
ठंडी में ठंडे पानी से नहाना
खुद के शरीर को सर्वसह बनाने के लिए कई सारे लोग सदैव ठंडे पानी से ही नहाते है। उनके मतानुसार रोज ठंडे पानी से नहाने से शरीर का सर्वसहत्व बढ़ता है मतलब शरीर किसी भी ऋतु के वातावरण को सहन कर सकता है। शरीर की रोगप्रतिकारक शक्ति में वृद्धि होती है। परंतु ध्यान रहे, यह धारणा गलत है। वास्तव में ऐसा कुछ होता ही नही है। उल्टा ठंडे पानी से नहाने से शरीर मे वात बढ़ता है और तरह तरह के वातव्याधी उत्पन्न होने की पूर्ण संभावना रहती है, जिसमे घुटने का दुखना एक साधारण तक्रार होती ही है।
आयुर्वेद इस बारे पहले से ही अत्यंत स्पष्ट है। आचार्य सुश्रुत ने 2000 वर्ष पूर्व ही इस बारे में एक मौलिक सूचना दे रखी है। आचार्य के अनुसार रोज गरम पानी से नहाना स्वास्थ्यकर होता है। फिर वो ग्रीष्म ऋतु की क्यो न हो!
पानी की गरमाई को ऋतु के अनुसार एडजस्ट करना चाहिए। जैसे बहोत ठंडी है और पानी बहोत गर्म है जो आपको सुखावह लगता है तो दिक्कत नही। ग्रीष्म ऋतु है और 45℃ से 48℃ जितनी गर्मी है, ऐसी स्थिती में नहाने के लिए पानी लेना है तो सिर्फ उसका शीतत्व मर जाए इतना ही उसे गर्म करना होता है। मतलब 48℃ जैसी कड़ी धूप में भी ठंडे पानी से नही नहाना चाहिए, बल्कि बहोत ही हल्का गरम ही लेना चाहिए। इसका कारण यह है कि त्वचा यह वातदोष का स्थान है और ठंडे पानी के स्पर्श से यह वातदोष बढ़ता है। इसलिये नहाने के पहले तेल मालिश करने लिए भी बोला है। तेल जैसे स्निग्ध पदार्थ से त्वचा में स्थित वात बढ़ता नही। पर आजकल तो लोग कभी तेल मालिश भी करते नही। ऊपर से कड़क ठंडी में भी ठंडे पानी से नहाते है। ऐसी अवस्था मे वात बढ़कर तरह तरह के वातव्याधी (Rheumatological disorders) नही होंगे तो क्या होगा? इसलिए चाहे कितनी ही गर्मी क्यों न हो, पानी सदैव गर्म ही लेना चाहिए। ऋतुनुसार पानी की गर्मी में तरतमत्व जरूर रखा जा सकता है। पानी गर्म हो और एकाध बार आप मालिश न करो, तो भी चल जाता है।
इसलिये बारा महीने ठंडे पानी से नहाने से शरीर सुदृढ़ होता है, यह जो गलत धारणा लोगो ने पाल रखी है, उसे त्यागना चाहिए। अन्यथा वातव्याधियो का स्वागत करने के लिए तैयार रहिये। अस्तु। शुभम भवतु।
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