
भात : आयुर्वेदीय दृष्टिकोण से विवेचन
चावल को पानी मे उबालकर पकाये बनाये जानेवाले आहारपदार्थ को भात कहते है। भारत की अधिकतम भाषाओं में इसे भात ही कहते है। प्राचीन काल मे सुवर्ण, चांदी, पीतल, काँसे के या मिट्टी के बर्तन में भात बनाया जाता था। अभी स्टील के बर्तन में बनाना हितकर है। परंतु आजकल कोई भी चावल को उबालकर भात नही बनाता। भात बनाने के लिए वर्तमान काल मे प्रेशर कुकर का उपयोग किया जाता है। उबालकर बनाने में बहोत ज्यादा समय लगता है। वही प्रेशर कुकर में 5-10 मिनिट में भी भात तैयार हो जाता है और आजकल के व्यस्त जीवन मे शरीर स्वास्थ्य से ज्यादा मूल्य समय का ही है। इसलिये यही परिपाटी रूढ़ हो गयी। परन्तु यह पद्धति योग्य नही। प्रेशर कुकर में पकाया हो तो कई बार चावल अंदर से पकते ही नही। कच्चे ही रह जाते है। इसलिये भात को उबालकर बनाना ही योग्य पद्धति है और उसे ही अपनाना चाहिए। कभी एकाध दिन अधिक व्यस्तता के चलते प्रेशर कुकर का उपयोग करने में दिक्कत नही।
आयुर्वेद के अनुसार भोजन करते वक्त सबसे पहले मधुर रस (मीठे स्वाद के आहारपदार्थ) सेवन करना चाहिए जैसे कोई मिठाई या फिर पीठी शक्कर और रोटी अथवा अन्य कुछ भी जो मीठा हो। परंतु हर वक्त खाने में मिठाई हो ये संभव नही, ऐसे वक्त आहार में सबसे पहले भात का सेवन करना चाहिए और इसके उपरांत ही अन्य आहारपदार्थो का सेवन करना चाहिए।
भात सदैव हल्का गर्म हो तभी खाना चाहिए। बहोत गर्म या एकदम ठंडा भात खाने का शास्त्र निषेध करता है। एकदम गर्म खाने से मुँह जलेगा तो एकदम ठंडा खाने से उसका पाचन बराबर नही होता। ठंडा भात पचने में बहोत ही भारी होता है इसलिये आयुर्वेद ठंडा भात खाने का स्पष्ट निषेध करता है। इसलिये भात जैसे ही बने, वो जब तक गरम है तब तक ही सेवन करना उचित होता है। अब कई लोगो को आधुनिक दिनचर्या के कारण ऐसा करना संभव नही होता तो उनके लिए यही सलाह है कि भात ही न खाए। खाना हो तो ताजा और हल्का गर्म भात ही खाये अन्यथा नही। परंतु इसका ये भी अर्थ नही की ठंडे भात को पुनः बघार देकर गरमागरम खाया जाए। आयुर्वेद किसी की अन्नपदार्थ को एक बार बनने के बाद फिर से गरम करने का निषेध करता है। ऐसे पुनः गरम किये हुए आहारपदार्थो को आयुर्वेद विषसमान मानता है। ठंडा भात पचने में बहोत भारी रहता है। इतना कि अगर ठंडे भात का रोज रोज सेवन किया जाता रहे, तो यह पाचनतंत्र को दुर्बल बना देता है। इसलिये जिन्हें पाचनतंत्र से संबंधित व्याधियां है जैसे भूख नही लगना, बारबार पतली संडास होना, बवासीर, फिशर (fissures), भगंदर उन्हें तो यह बात विशेषरूप से ध्यान में रखनी चाहिए।
भात बनाने के से पहले चावल को 2-3 बार स्वच्छ पानी से धो लेना चाहिए। आजकल तो इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि चावलों को कीड़े न लगे इसलिये उसे बोरिक एसिड की पाउडर लगाकर सुरक्षित रखने की परंपरा आज प्रचलित है। इसलिये 2 बार सादे पानी (Hard water) से धोकर 3 री बार आरओ/नल के मीठे पानी से धोना चाहिए। फिर उसमें 5 गुना (कुछ आचार्य 14 गुना जल की भी सलाह देते है) मीठा जल डालकर उसे पकाये। जब चावल अच्छी तरह से पक जाए तब, अगर कुछ पानी बचा है, तो उस पानी को नितार ले। बचा हुआ चावल ही भात है। ध्यान रहे पानी नितारे बगैर भात नही खाये। क्योंकि पानी वाला भात पाचन में भारी होता है।
जिनका पाचनतंत्र बहोत दुर्बल है, जिन्हें बार बाद गैस बनता है, डकार आते है। खाने के बाद पेट भारी होता है ऐसे लोगो को भात बनाने से पहले चावल को ओखली में हल्का हल्का कूटना चाहिए ताकि एक पूरा चावल टूटकर दो हिस्सों में अलग हो और फिर उसके बाद उसमें 14 गुना (यहां 5 गुना नही) पानी डालकर, उबालकर भात बनाना चाहिए। चावल को कूटने का विधान इसलिये है कि कूटा हुआ चावल अंदर से भी पूरी तरह से पकता है और पाचन में हल्का होता है। जल्दी पच जाता है। जिन्हें बुखार है, संडास पानी जैसी पतली हो रही है, बारबार उल्टियां हो रही हो ऐसे लोगो को इसी तरह से भात बनाकर देना उचित रहता है।
भात बनाते वक्त एक विशेष नियम यह है कि बर्तन का मुँह ढंकना नही चाहिए। अपितु खुला ही रखे। खुला रखकर भात पकाने से वह पाचन में हल्का होता है। चावल पकने के बाद अगर कुछ पानी बच जाए तो उस पानी को छानकर निकाल ले। इसी पानी को भात का मण्ड (बोलचाल की भाषा मे माण्ड) कहते है। इस मण्ड को पीया जा सकता है अथवा फेक दे तो भी चलेगा। मण्ड पीने से वजन कम होता है ऐसा आयुर्वेद कहता है। इस तरह से मण्ड छानकर बचा हुआ चावल ही भात है,वो सुहाता गर्म हो तभी खाना चाहिए।
सांप्रत काल में वमन या विरेचन जैसे पंचकर्म के बाद जो पेया पिलाई जाती है या भात खिलाया जाता है, वह इस तरह खुले मुँह वाले बर्तन में पकाने की बजाए प्रेशर कुकर में पकाते है, जो शास्त्रसम्मत नही है। वमन, विरेचन के बाद पाचनतंत्र को हल्के आहार की अपेक्षा रहती है। इसलिये प्रेशर कुकर में बनाया भात देना उचित नही रहता यह ध्यान रखे।
भात बनाने के लिए चावल सदैव एक साल पुराना ही उपयोग करे। एक साल पुराना चावल पचने में हल्का रहता है। नए चावल में पानी का प्रमाण थोड़ा ज्यादा रहता है। इसलिये उसे एक बार धूप में सुखाकर एक वर्ष तक धान्य कोठी में बन्द करके सुरक्षित रखे और एक वर्ष के पश्चात ही उसका खाने में उपयोग करे। ऐसे एक साल पुराने चावल का भात तो डायबिटीज वाले लोग भी बिनदिक्कत खा सकते है।
भात एक सात्विक आहारपदार्थ है। सुबह के नाश्ते में चाय रोटी, तला हुआ, तीखा और खट्टा खाने से कई गुना अच्छा है दूध भात (ताजा) शक्कर, भात घी शक्कर, दालभात खाया जाए। मधुर रसात्मक होने से बल भी बढ़ता है और एसिडिटी जैसी तकलीफ भी नही होती। अस्तु। शुभम भवतु।
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