
क्यों और क्या होता है ब्लड प्रेशर?
बीपी अर्थात ब्लड प्रेशर। बीपी यह ब्लड प्रेशर इस इंग्लिश शब्द का संक्षिप्त स्वरूप है। सामान्यतः बीपी यह शब्द हाई ब्लड प्रेशर को दर्शाने के लिए उपयोग किया जाता है। वर्तमान काल मे यह व्याधि इतना सामान्य हुआ है की एक अनपढ़ व्यक्ति भी, की जिसे अपनी मातृभाषा भी लिखना पढना नही आती, उसे बीपी यह शब्द पता है और अगर उसे बीपी का निदान (Diagnose) हुआ है, तो उसे क्या हुआ होगा ये उसे समझ मे आ जाता है। अधिकतम अवसरों पर यही होता है कि कोई मजदूर भी होगा और उसका सिर, दर्द से फटा जा रहा होगा, तो वो डॉक्टर के पास जाकर बोलता है कि डॉक्टर साहब जरा बीपी चेक कीजिये तो, लगता है बीपी बढ़ गया है। मतलब एक सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी आज इस व्याधि के स्वरूप से परिचित हो गया है। परंतु आश्चर्य यह है कि कारणों से कोई भी परिचित नही, इसलिये अज्ञानतावश वह उन कारणों का सेवन करता रहता है और बीपी से ग्रसित हो जाता है और अगर पहले से बीपी है, तो वह अनियंत्रित होता जाता है। कारणों की इस अज्ञानता की वजह से आजकल यह व्याधि धनिकों के साथ साथ गरीबों में भी बहोत मात्रा में पाया जाता है। अतःएव उन कारणों को जानना अतिआवश्यक है और इस व्याधि से बचाव का पहला सोपान है।
तो आइये केवल उन सामान्य कारणों की संक्षिप्त में चर्चा करते है, जो हमारे दैनिक जीवन से संबंधित है और जिन्हें वर्ज्य करना सहज सुलभ है और जिन्हें एक अवैद्यकीय (Non Medico) व्यक्ति भी सुगमता से समझ सकता है। अन्य कारणों में कुछ वंशानुगत भाव (Hereditary factors) तथा जन्मतः हृदय का दुर्बल होना भी होता है। हृदय के नजिक रहनेवाली रक्तवाहिनियों का सिकुड़ जाना, उनमें खून की गांठ होना (Thrombosis) तथा वृक्क को रक्त पहुचाने वाली रक्तवाहिनी का सिकुड़ जाना ( Renal artery stenosis) भी अन्य कारणों में समाहित है। इन सब कारणों को निश्चित रूप से टाला जा सकता है और उसके लिए डॉक्टर के पास जाकर उनसे प्रत्यक्ष सलाह लेना ही उचित है। परंतु एक कारण ऐसा है जिसे हम आराम से टाल सकते है और वो है गलत आहार विहार।
लोगो का आहारविहार आजकल पूर्णतः गलत हो चुका है। इसका कारण है, अपनाई हुई गलत जीवनशैली। हम भारतीयों ने ब्रिटिशों की जीवनशैली अपनायी है। तो यह तो सहज है कि हमे व्याधि भी वही होंगे, जिनका ब्रिटिशों में प्रमाण ज्यादा है। उन सभी व्याधियों में हाइपरटेंशन मतलब हाई बीपी एक ऐसा ही जीवनशैली विकार है।
मोटे तौर पर बीपी का मतलब भले ही हाइपरटेंशन हो, पर बीपी और हाइपरटेंशन दोनो अलग वस्तुएं है। ब्लड प्रेशर का मतलब ऐसा प्राकृतिक प्रेशर जिसकी मदद से हृदय पूरे शरीर मे ऑक्सीजन वाले रक्त को फैलाता है। साधारणतः यह प्रेशर 120/80 मिमी जितना होता है। मतलब जब इतना प्रेशर हृदय में उत्पन्न होता है, तभी वह शरीर के अंतिम छोर (end) तक रक्त पहुँचा सकता है। पर अगर बीच रास्ते मे कही कुछ रुकावट आयी, तो रक्त को अपने गंतव्य तक पहुचाने में देर लगती है और रक्त तो किसी भी हालत में पहुँचाना ही होता है, अन्यथा वह संबंधित अवयव सड़ना शुरू हो जाता है। इसलिये हृदय उस रुकावट को दूर करने के लिए पहले से ज्यादा ताकत लगाकर रक्त पहुँचाने की कोशिश करता है, ताकि इस बढ़े हुए प्रेशर से वो रुकावट रास्ते से दूर होकर रास्ता साफ हो जाये। इस ज्यादा ताकत लगाने को ही ब्लड प्रेशर बढ़ना अर्थात हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन ऐसे कहते है। मतलब हृदय से लेकर शरीर के अंतिम हिस्से तक फैली हुई रक्तवाहिनियों में अगर किसी भी कारण से रुकावट हुई तो हृदय को ब्लड का प्रेशर बढ़ाना पड़ता है। यह रुकावट रक्तवाहिनियों के सिकुड़ने की वजह से भी आ सकती है, रक्तवाहिनियों में छोटा ट्यूमर होने की वजह से भी आ सकती है या फिर बाहर से कोई दबाव आने के कारण अगर रक्तवाहिनी दब गई हो तब भी रक्तप्रवाह धीमा हो जाता है। इन सब स्थितियों में रास्ते की इन रुकावटों की वजह से हृदय को बड़ी ताकत से रक्त को शरीर के अंतिम हिस्से तक पहुँचाना पड़ता है। यही सब हाइपरटेंशन के कारण है। ये सभी रचनात्मक विकृतियां (Structural deformities) है, यह ज्यादातर देखी नही जाती। परंतु इसके सिवा एक कारण ऐसा है जो अत्यंत सामान्य है - रक्त का पहले की अपेक्षा गाढ़ा होना।
सामान्यतः रक्त पतला होता है। द्रवस्वरूप होता है। इसलिये इसे शरीर के अंतिम छोर तक पहुँचाना हृदय के लिए कोई बड़ी बात नही होती। पर मान लीजिए कि यही पतला खून अगर तेल के जैसा चिकना और भारी होता तो क्या इतने ही ताकत से हृदय उसे शरीर के अंतिम हिस्से तक पहुँचा पाता? नही न! मतलब हृदय जिस प्रेशर से रक्त को शरीर में फैलाने का काम करता है, वह प्रेशर रक्त की द्रवता पर भी आधार रखता है। जितना खून पतला उतना वो जल्दी अपने गंतव्य तक पहुँचेगा और जितना गाढ़ा बनता जाएगा उतना उसके घनत्व की वजह से और ज्यादा समय लगता जाएगा। मतलब ये साफ है कि वो सभी कारण हृदय के प्रेशर को बढ़ाएंगे जिनसे रक्त पहले की अपेक्षा गाढ़ा बनता जाएगा।
आजकल लोगो का आहारविहार पर जरा भी नियंत्रण नही। क्या खाना, कब खाना इसका कोई तंत्र नही। जीभ को अच्छा लगे और मन मे आये वैसा लोग खाते है। परिणामस्वरूप पाचनतंत्र दुर्बल होता है। पाचकाग्नि मंद होता है। पाचनतंत्र के इस हाल की वजह से खाये हुए अन्न का पाचन बराबर नही होता। अन्न से अधपका अर्थात कच्चा आहाररस बनता है, जो चिपचिपा तथा संगठन में तेल जैसा गाढ़ा होता है। इसे आयुर्वेद की भाषा में आम कहते है। यह आम धीरेधीरे रक्त में शोषित होकर मिश्रित हो जाता है। परिणामस्वरूपी रक्त में भी उस आम के गुण आ जाते है और रक्त भी चिपचिपा, भारी और गाढ़ा बन जाता है। रक्त के संगठन में इन बदलावों के कारण, हृदय को अपने अंदर स्थित रक्त को सर्व शरीर भर फैलाने में पहले की अपेक्षा जरा ज्यादा ही ताकत लगानी पड़ती है। इस अतिरिक्त ताकत (Extra force) को ही आधुनिक विज्ञान हाइपरटेंशन अर्थात ब्लड प्रेशर के रूप में नापता है और जानता है। संक्षिप्त में अगर आपका आहारविहार गलत है या आपका पाचनतंत्र दुर्बल है और यही क्रम अगर ऐसे ही चलता रहा तो रक्त के संगठन (Composition) में बदलाव आकर हाइपरटेंशन अर्थात बीपी उत्पन्न हो जाता है।
रोज भूख लगे तब नही खाना, भूख लगे तब खाने से पहले ही बहोत पानी पीना, बाते करते करते खाना, सुबह की बजाय दोपहर 2-3 बजे खाना और रात का खाना 9,10 या 11 बजे खाना, खाना खाते वक्त बहोत ज्यादा पानी, ठंडा पानी, छाछ या ठंडी छाछ पीना, अत्याधिक मात्रा में तला हुआ खाना या कमसे कम रोज एक बार तला हुआ खाना, रोज दही खाना, पिज्जा, बर्गर, भेल, पानीपुरी जैसे जंक फूड का ज्यादातर मात्रा में सेवन करना, अधिक मात्रा में मांसाहार करना, अंडे खाना, सुबह का पचा नही फिर भी शाम को खाना, खाने में सब्जी के साथ दूध खाना, बेकरी के पदार्थ खाना, सोयाबीन, सूरजमुखी, पाम तेल जैसे तेलों का सेवन करना, रात को देर रात तक जागना, आधी रात में खाना इन सब कारणों से पाचकाग्नि एकदम दुर्बल हो जाता है। यही दुर्बल पाचकाग्नि फिर आम उत्पन्न करके रक्त के संगठन में बदलाव निर्माण करता है और परिणामस्वरूप बीपी व्याधि के रूप में प्रकट होता है।
रक्त के संगठन के साथ साथ यह स्थिती रक्तवाहिनियों की मृदुता पर भी निर्भर करती है। रक्तवाहिनी अगर मृदु है, तो उसमे से वहन होनेवाले रक्त को किसी प्रकार के प्रतिरोध (Resistance) का सामना नही करना पड़ता। उदाहरण से इस बात को समझने की कोशिश करते है। समझो एक 1 मीटर लंबा प्लास्टिक का पाइप है। अब इसके एक सिरे (End) से पानी डालिये और दूसरे सिरे से निकलने तक का समय नोट कर लीजिए। पाइप भी नया है, मृदु है, स्निग्ध है तो पानी कम समय मे बिना किसी प्रतिरोध के दूसरे सिरे से बाहर निकल आएगा। पर यही पानी अगर तेल या घी के साथ मिश्रित हुआ तो उसे दूसरे सिरे से आने में पहले से ज्यादा समय लगेगा या फिर उसी पाइप में जलवायु के कारण शुष्कता, कठोरता आ गयी तो पानी को पाइप के अंदर से बहने में थोड़ा प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा, इसलिये अगर नए पाइप में दूसरे सिरे से पानी 5 सेकंड में आया होगा तो कई साल पुराने पाइप में यही समय 7 या 8 सेकंड या उससे अधिक हो सकता है। मतलब पानी का दूसरे सिरे से निकलना जितना उसके खुद के संगठन पर निर्भर करता है, उतना ही वो जिस पाइप से प्रवाहित हो रहा है उसके स्वास्थ्य पर भी निर्भर करता है। रक्त और रक्तवाहिनी का भी यही संबंध है। रक्तवाहिनी मृदु रही तो उसमे से रक्त का संचार तेजगति से होता है, इसलिये हृदय को ज्यादा प्रेशर से रक्त का विक्षेपण नही करना पड़ता। पर बढ़ती उम्र की वजह से या आहार में घी, तेल जैसे स्निग्ध पदार्थ न लेने से (जैसा फॅड आजकल चल रहा है), नियमित अभ्यंग (तेल मालिश) न करने से, रूखा सूखा खाने से वात बढ़कर रक्तवाहिनियों में काठिन्य (Sclerosis) उत्पन्न हो जाता है। इस काठिन्य के कारण रक्त पतला रहा तो भी उसे उसके गंतव्य (End Organ) तक पहुँचने में देर लगती है।
अब यह दो कारण आपको सूर्यप्रकाश जितने स्पष्ट हो गए होंगे कि अगर पाचन खराब है तो आम बढ़कर भी ब्लड प्रेशर प्रकट हो सकता है या फिर रक्तवाहिनी काठिन्यता की वजह से भी ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है। इसलिये पाचनतंत्र सबल रहे तथा शरीर मे पर्याप्त स्निग्धता बने रहे इसका ध्यान रखना चाहिए।
पाचनतंत्र को सबल रखने के लिए दिनचर्या, ऋतुचर्या का पालन तथा आहारविहार का ध्यान रखना चाहिए। महीने में कमसे कम एक बार अथवा बहोत ज्यादा व्यस्त हो तो 60 दिनों में एक बार सिद्ध एरंड तेल से सद्योविरेचन करना ही चाहिए, ताकि पेट साफ होकर आम का निर्हरण तो हो ही जायेगा, साथ मे शेष आम का पाचन होकर वह निष्क्रिय हो जाएगा। ब्लड प्रेशर अगर नया नया ही निदान हुआ हो, तो हर 15 दिन में एक बार सद्योविरेचन करने से ब्लड प्रेशर निर्मूल होने की अधिक संभावना रहती है। लेकिन अगर बहोत पुराना है, तो सद्योविरेचन करने से निश्चितरूप से नियंत्रण में रहता है और उसके उपद्रव (Complications) नही होते। सिद्ध एरंड तेल से प्रत्येक महीने में एक बार किया गया सद्योविरेचन ब्लड प्रेशर की वजह से जीवन के उत्तरकाल में होनेवाले उपद्रवों (जैसे किडनी फेल्योर) से निश्चित रूप से बचाता है।
शरीर धातुओ तथा अवयवों में पर्याप्त स्निग्धता बनी रहे इसलिये रोज सुबह नहाने से पहले तेलमालिश (अभ्यंग) करना चाहिए। अतिव्यस्तता के कारण रोज संभव न हो तो सप्ताह में कम से कम 1 या 2 बार तो करना ही चाहिए। भोजन में पर्याप्त मात्रा में देसी घी (मक्खन से बनाया हुआ) की मात्रा लेनी चाहिए। रोज सुबह गरम दूध के साथ भी 30 मिली जितना गाय का घी पीना चाहिए। पंचकर्म में संभव हो तो बस्तिकर्म जरूर करना चाहिए। अस्तु। शुभम भवतु।
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