पेट्रोलियम जेली का उपयोग कर रहे हो? सावधान !!
प्राचीन काल के ज्ञान की एक विशेषता होती थी की मनुष्य जो भी ज्ञान अर्जित करता था, उसका यथोचित उपयोग करके वह अपने जीवन-प्रवास को सुखी बनाने का प्रयत्न करता था। ऐसा कई युगों-शतको तक चला। बाद मे जैसे जैसे समयचक्र आगे बढता गया, वैसे नये ज्ञान की उपलब्धी होने लगी। परंतु इस आधुनिक ज्ञान की भी अपनी एक विशेषता रही है। वो यह की आधुनिक ज्ञान प्राप्त करने के बाद मनुष्य ज्ञानी होने की बजाए, पहले से ज्यादा भ्रमित हो जाता है। यह भ्रम का स्तर भी इतना ज्यादा रहा की आधुनिक ज्ञान के पीछे लगकर मनुष्य प्राचीन ज्ञान की उपादेयता को ही भूल गया है।
पैराफिन वैक्स का अभ्यंग के लिए सांप्रत काल मे किया जानेवाला उपयोग भी ऐसी ही स्थिती का एक परिणाम मात्र है। प्राचीन काल मे आयुर्वेद के धुरंधर आचार्योने अभ्यंग के लिए तिलतैल तथा अन्य तैलो की सूचना की थी। परंतु भारतीय जनजीवन मे जैसे जैसे आधुनिक विचारों का प्रवेश होता गया, वैसे वैसे भारतीय लोग अपने प्राचीन आचार्योद्वारा दिए गये ज्ञान को भी भूलते गये और आधुनिक मान्यताओं को अपनाते गये। परिणाम आज समाज के सामने है। आज के युवक-युवतीयो मे फंगल इन्फेक्शन तथा अन्य त्वचाविकारों का प्रमाण बढ़ा है और उन त्वचाविकारों को निर्माण करने में पैराफिन वैक्स की सबसे बड़ी भूमिका है। पैराफिन वैक्स को एक अन्य नाम पेट्रोलियम जेली के नाम से भी जाना जाता है। पेट्रोलियम जेली स्पर्श में अत्यंत चिकनाहट युक्त एवम मुलायम होती है। निर्गन्ध होती है मतलब इसमे कोई गंध नही होता। अच्छी तरह से पैक करके अगर कुछ महीनों तक रखी जाए तो भी खराब नही होती और प्रचुर मात्रा में सस्ती क़ीमत पर बाजार में उपलब्ध भी होती है। मतलब पेट्रोलियम जेली में वो सभी गुणधर्म उपलब्ध है, जो उसे व्यापारिक स्तर पर उपयोगी सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। इसलिए व्यापारियों ने इसे त्वरित अपना लिया और तरह तरह के मलम, क्रीम तथा बॉडी लोशन का आधार (Base) बनाया। पैराफिन वैक्स यह स्पर्श में भले ही मृदु एवम मुलायम हो परंतु यह गुणों में शीत नही बल्कि उष्ण होता है। दिखता स्निग्ध है परंतु वास्तविक रूप में होता है रुक्ष गुणवाला। क्योंकि यह मूलतः एक पेट्रोलियम बाय प्रोडक्ट है मतलब इसका निर्माण पेट्रोल से होता है।
आप लोगो को यह ज्ञात होगा ही कि आखाती देशों में जो कच्चा तेल मिलता है, वह पेट्रोल नही होता। इस कच्चे तेल पर रिलायंस, एस्सार जैसी बड़ी बड़ी कंपनियां अपने रिफाइनरी में रासायनिक प्रक्रिया करती है और पेट्रोल निर्माण करती है। इन रासायनिक प्रक्रियाओं के दरम्यान बीच बीच में कई बाय प्रोडक्ट्स तैयार होते है। पेट्रोलियम जेली (पैराफिन वैक्स) उनमेंसे एक है। संक्षिप्ततः कहा जाए तो पेट्रोलियम जेली पेट्रोल से ही बनती है। मतलब साफ है कि उसके गुणधर्म पेट्रोल जैसे ही होंगे। जैसे छाछ से आप बासुंदी नही बना सकते और मिर्च पाउडर से मिठाई, बस वैसा ही यह प्रकार है। पेट्रोल से बननेवाली पेट्रोलियम जेली भी पेट्रोल के जैसी उष्ण, रुक्ष एवम स्निग्ध होते हुए भी विशद गुणात्मक रहती है। इसलिए भी पेट्रोलियम जेली (जिसे आजकल वैसलीन के नाम से भी जाना जाता है) युवक युवतियों में प्रसिद्ध है क्योंकि यह शरीर पर लगाने के बाद त्वचा चिपचिपी नही होती। इसी गुण के कारण युवक युवतियाँ आजकल तैल से मालिश करने की बजाए पेट्रोलियम जेली से मालिश करना पसंद करते है। परंतु चूँकि पेट्रोलियम जेली आग्नेय गुणात्मक है, रुक्ष है। यह त्वचा को स्निग्ध स्पर्शात्मक होने के बावजूद रुक्ष बनाना शुरू कर देती है। यह रुक्षता त्वचा से स्नेह का शोषण करके धीरे धीरे उसकी व्याधिप्रतिकार क्षमता कम कर देती है। इसलिए आजकल के युवक युवतियों को फंगल इंफेक्शन जैसे छोटे छोटे व्याधि बार बार होकर लंबे समय तक रहते है। 1980-90 के दशक में दाद जैसा त्वचारोग तो विरले व्यक्ति में ही मिलता था। जो लोग नित्य नहाते नही है, उचित तरीके से शरीर की स्वच्छता का ध्यान नही रखते, उन्ही लोगों में दाद देखने को मिलती थी। परंतु आजकल तो दाद के लिए ऐसी कोई मर्यादा नही रही। रोज नहानेवाले, अतिस्वच्छता प्रिय लोगों में भी दाद और खाज की उपस्थिति मिलती है और वो भी दीर्घकाल के लिए। कई लोगो मे देखा गया है कि उन्हे दाद और खाज पिछले 3-4 वर्ष से थी। अब अगर देखा जाए तो आधुनिक औषधि विज्ञान ने बड़े बड़े ताकतवर एन्टी फंगल औषधियों का अविष्कार किया है। परंतु ये ताकतवर औषधियाँ भी इन फंगल इंफेक्शन का कुछ बिगाड़ नही पाई। एक बार फंगल इंफेक्शन हुआ कि वह महीनों-महीने या सालोंसाल चलता देखा जाता है। इसका एकमात्र कारण है - सोडियम लौरेथ सल्फेट अथवा पेट्रोलियम जेली जैसे आग्नेय तथा रुक्ष द्रव्योंसे युक्त सौंदर्य प्रसाधनों को नियमित एवम दीर्घकाल तक उपयोग करना।
प्राचीन काल मे दाद, खाज जैसे फंगल इंफेक्शन हजारों में किसी एक व्यक्ति में देखे जाते थे। इसका कारण तिल तैल अथवा तत्सम त्वचा का पोषण करनेवाले तेलों द्वारा नित्य अभ्यंग (मालिश) करने की परिपाटी उस काल मे प्रचलित थी। नित्य अभ्यंग से त्वचा व्याधिक्षम, दृढ़, निर्मल एवम मृदु मुलायम रहती थी। परंतु आधुनिकता की होड़ में तथा पश्चिमात्यों के अंधानुकरण के चक्कर मे भारतीयों ने अपना अभ्यंग छोड़ दिया और उनकी सुगंधित पेट्रोलियम जेली से मालिश करने का नित्यक्रम शुरू कर दिया। आज तो शहरी युवतियों में से पंचानवे प्रतिशत युवतियाँ पेट्रोलियम जेली (वैसलीन) लगाकर ही घर के बाहर निकली है, मानो जैसे भारत सरकार ने ऐसा कोई कायदा ही किया हो ! ऐसी स्थिति में त्वचा स्वस्थ कैसे रहेगी? विचारणीय है।
पेट्रोलियम जेली में वैसे तो कोई पोषक तत्व होते नही, इसलिए बैक्टीरिया भी उसमे पनपते नही। फिर भी बैक्टेरिया की कुछ प्रजातियाँ तथा फंगस पेट्रोलियम जेली पर अपना निर्वाह करते है। इसलिए भी फंगल इन्फेक्शन दूर करने के लिए उपयोग में लाए जानेवाले मलम अथवा क्रीम से फंगल इंफेक्शन कभी पूरा ठीक नही होता। कुछ युगल (couples) संभोग क्रिया में ज्यादा आनंद आए इसलिए पेट्रोलियम जेली का लिंग अथवा योनि में लेपन करते है जिससे क्रिया में मृदुता आए। परंतु ऐसी स्थिती में महिलाओं को योनि में बैक्टीरियल वजायनोसिस अथवा यीस्ट इन्फेक्शन होने की पुरेपुरी संभावना रहती है। इसलिए मनुष्य शरीर मे उपयोग के लिए, पेट्रोलियम जेली जिसका आधार (Base) हो ऐसे प्रसाधनों का उपयोग नही करना चाहिए।
अस्तु। शुभम भवतु।
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