टमाटर - भारतीय या विदेशी ?
लेख का शीर्षक पढने के बाद आपको थोडा अचरज हुआ होगा की यह कैसा प्रश्न है?
जब टमाटर भारतीय ही है तो फिर ऐसा प्रश्न करने का औचित्य ही क्या है?
टमाटर भारतीय जनमानस के साथ ऐसा घुलमिल गया है की सच मे उपरोक्त प्रश्न पढकर कई लोगों को अटपटा लगा होगा। परंतु वास्तव यही है की टमाटर अभारतीय है। टमाटर यह मूलतः पेरू (दक्षिण अमेरिका) देश का निवासी है। वहाँ से यूरोप मे इसका प्रचार प्रसार हुआ। यूरोप से 16 वी शती मे यह भारत मे पोर्तुगीजो द्वारा लाया गया। चूँकी उष्ण हवामान इसके विकास के लिए पोषक होता है, भारत मे यह अच्छी तरह से विकसित हुआ। विदेशियों द्वारा लाया गया होने से भारतीयों मे इसका आकर्षण था ही। इसलिए टमाटर भारत मे बहोत फला - फूला। आज तो यह स्थिती है की टमाटर भारतीय रसोईघर का आत्मा बन चुका है। भारतीयों की कोई भी सब्जी आज बिना टमाटर के बनती ही नही। सब्जी के साथ साथ टमाटर आजकल दाल मे भी डाला जाता है। गुजराती और पंजाबी सब्जियां तो बिना टमाटर के बनाना असंभव सा हो गया है। बिना टमाटर के इन सब्जियों की तो कल्पना भी नही की जा सकती।
इतिहास साक्षी है की भारतीयों ने सदैव विदेशीयों का स्वागत ही किया है। वैसे ही भारतीयों ने विदेशी सब्जियों का भी स्वागत कर उन्हे अपना बना लिया और आज तो हालत यह है की भारतीयों ने विदेशी टमाटर की देसी प्रजाति भी विकसित कर डाली है। टमाटर को शाको का राजा अगर आज कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ती नही होगी। ऐसी यह फलशाक क्या भारतीयों को खाना चाहिए? क्या यह भारतीयों के लिए उतनी ही उपयुक्त है, जितनी विदेशीयों के लिए?
आयुर्वेद मे टमाटर का कोई उल्लेख या संदर्भ नही मिलता। इसलिए इसके गुणदोषों का आयुर्वेदीय विवेचन प्राचीन ग्रंथो मे उपलब्ध नही है। परंतु इसके सेवन के बाद शरीर पर होनेवाले परिणामो से इसके गुणदोषो का निश्चित अनुमान लगाया जा सकता है।
टमाटर यह स्वाद मे अम्लरसात्मक (खट्टा) होता है। आयुर्वेदीय सिद्धांतानुसार जो द्रव्य अम्लरसात्मक होते है, वह वातशामक (मतलब बढे हुए वायु को शांत करनेवाले) होते है। परंतु टमाटर सेवन के पश्चात ऐसा कोई भी वातशामक कार्य शरीरपर दिखता नही। उलटा वातदोष की वजह से होनेवाली व्याधियों के लक्षणों मे वृद्धि जरूर होती है। संधिवात या आमवात होगा तो संधियों की सूजन एवं दर्द बढता है। किसी को सर्दी, खाँसी या श्वास की तकलीफ होगी तो उन - उन व्याधि के लक्षणों मे वृद्धी होती है। किसी को पूर्ण शरीर में अथवा शरीर के किसी एक हिस्से मे खुजली आ रही हो, तो वह बढती है। यह सभी लक्षण कच्चा टमाटर खाने से त्वरित बढते हुए हम देख सकते है। पके टमाटर से थोडी देर लगती है, पर लक्षणों में वृद्धी तो होती ही है। कच्चे और पके टमाटर मे कच्चा टमाटर ज्यादा अहितकारक होता है।
वैद्यकीय व्यवहार (Medical Practice) में टमाटर का एक और अवगुण देखने को मिला है। टमाटर माँसशैथिल्य उत्पन्न करता है। इसलिए अश्वगंधा, शतावरी जैसे औषधिद्रव्यों का रसायन कर्म के लिए जब सेवन किया जाता है, तब इन द्रव्यों के उचित रसायन कर्म की प्राप्ति नही होती। अतः एव रसायन चिकित्सा सेवन करते समय तो टमाटर का पूर्ण निषेध करना ही उत्तम होता है।
टमाटर के अतिसेवन से किडनी में पथरी तो अपरिहार्यतः उत्पन्न होती ही है। अगर पहले से ही वृक्कविकार (Renal Failure) हो तो गलती से भी टमाटर का सेवन न करे। टमाटर किडनी की कार्यक्षमता भी कम करते देखा गया है।
कई विद्वान टमाटर का रोगकर्तृत्व उसके बीजो के कारण समझते है। जो कई हद तक सही भी है। परंतु पूर्णसत्य नही। बीज निकालकर खाने के बाद भी उसका रोगकर्तृत्व तो रहता ही है।
उपरोक्त वर्णन पढने के बाद टमाटर की उपयोगिता पर आपको निश्चित संदेह तो होगा ही। परंतु ध्यान रहे, यह सभी दोष, टमाटर के अतिमात्रा मे सेवन करने पर ही उत्पन्न होते है। 10-15 दिनों मे एक बार टमाटर खाने से उसके सद्गुणों की भी उपलब्धि होती है। परंतु आजकल यही देखने मे आया है कि लोग टमाटर का प्रचुर मात्रा मे उपयोग करते है। सब्जी हो, दाल हो या भेल हर जगह टमाटर का उपयोग किया जाता है। कई बार सब्जी खाते वक्त यही पता नही चलता की सब्जी टमाटर की है या अन्य किसी शाक की, इतनी ज्यादा मात्रा मे सब्जियों मे टमाटर का प्रयोग आजकल हो रहा है। अकेले टमाटर का सूप भी पीया जाता है। चिप्स हो या अन्य कोई फ्राइम, उसे खट्टा करने के लिए टमाटर का ही उपयोग किया जाता है। टमाटर की सॉस का उपयोग तो इस हद तक बढ़ गया है कि उसे बनाने के लिए उद्योगजगत को ग़ैरनीति का अवलंब करना पड़ रहा है। (कुछ मीडिया रिपोर्ट के नुसार आज का टमाटर सॉस कोहड़े (काशीफल) से बनता है)। मतलब जहाँ टमाटर जैसे विपुल मात्रा में उपलब्ध होनेवाले फलशाक के लिए भी ग़ैरनीति अपनानी पड़े, मतलब समझिये की हमारे देश के लोग टमाटर कितना खाते होंगे! अब इतने ज्यादा मात्रा में अगर टमाटर सेवन किया जाएगा तो उसके सुपरिणाम होंगे या दुष्परिणाम ये आप ही तय कीजिये।
अस्तु। शुभम भवतु।
©श्री स्वामी समर्थ आयुर्वेद सेवा प्रतिष्ठान, खामगांव 444303, महाराष्ट्र, भारत