ता.र.त.म्य. - आहारचयन का
स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए आयुर्वेद मे हितकर आहार एवं विहार की विस्तारपूर्वक चर्चा की गयी है। एक पूर्ण वर्ष मे 6 ऋतु रहते है। इन ऋतुओं मे स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए क्या सेवन करना चाहिए? क्या टालना चाहिए? यह सब बताया है। इसके सिवा प्रकृति के अनुसार भी प्रत्येक व्यक्ति को सदैव क्या हितकर होगा और क्या अहितकर होगा यह भी बताया है। इन सब नियमों का पालन मनुष्य को निरोगी रखता है। इसलिए इन नियमों का निरंतर पालन करना ही श्रेयस्कर होता है।
परंतु क्या सच मे इन नियमों का यथार्थ रूप से पालन किया जा सकता है?
उत्तर है - नही।
वर्तमान स्थिती मे भारतवर्ष आहार के विषय मे इतना कलुषित हो चूँका है की बाहर हितकर एवं सात्विक आहार प्रत्येक जगह मिलना संभव नही रहा। आहार की तो बात ही दूर है, आज आप कही भी जाओ, चाहे किसी कार्यालय मे जाओ, सिनेमाघर जाओ, मंदिर जाओ या किसी व्यक्ति के घर, आपको पीने के लिए पानी भी फ्रिज का ही मिलेगा। सादे पानी के लिए विशेष अनुरोध करना पडता है, इतनी भयंकर दुर्गति आज भारतवर्ष की हुई है। आयुर्वेद व्याधी अवस्था मे प्रायत: कुनकुना गर्म पानी पीने की सलाह देता है। इसलिए आयुर्वेद अस्पतालों मे तो गर्म पानी की विशेष व्यवस्था होना अनिवार्यतः अपेक्षित है। परंतु यह दुर्गति इस हद तक पहुँची हुई है की आयुर्वेद के बडे बडे अस्पतालों मे भी आज पीने के पानी के कूलर लगे हुए है।
किसी कार्यवश अगर घर से बाहर किसी दूसरे गाँव मे जाओ, तो नाश्ते मे हर जगह फाफडा, गाठियाँ, दालवडा, ब्रेड-बटर, सैंडविच, ऑमलेट, पौआ, चाय-खारी, चाय-टोस्ट, चाय-बिस्किट, इडली, वडा, वडापाव, डोसा, उतप्पम यही सब मिलेगा। अब यह सब नाश्ते मे लेना यह स्वास्थ्य के लिए कितना हितकर है, यह कहने की आवश्यकता है? इतना होने के बावजूद भी, आपने किसी रेस्टोरेंट पर नाश्ते मे दूध सादी रोटी, दूध भात, शिरा, दूध पोहा, उपमा ऐसा मिलते देखा है? मतलब जिस भारतवर्ष ने हितकर आहार की संकल्पना को समाज मे दृढ किया, उसी भारतवर्ष में हितकर आहार मिलने के जबरदस्त वांधे है।
दोपहर और शाम के खाने मे जगह पंजाबी पद्धती से बनाया हुआ खाना सुलभता से मिल जाता है। पर सादा भोजन करना हो तो बहोत ढूँढना पडता है, जो उस शहर मे आये नये लोगो के बस की बात नही होती। इसलिए उन्हे असहाय होकर पंजाबी खाना ही खाना पडता है। जो किसी को अनुकूल आता है तो किसी को नही। जैसे-तैसे सादे खाने का जुगाड कर भी ले, तो उसमे दाल खट्टी होती है या फिर सब्जी टमाटर या आलू से भरी होती है या फिर सब्जी मे इतना तेल होता है की मानो भोजनालय चलानेवाले की खुद की तेल की घाणी हो।
अब ऐसी स्थिती मे पथ्यपालन करे तो किस तरह से करे?
सच मे यह यक्षप्रश्न है। परंतु तरतमत्व से इस समस्या का भी निराकरण किया जा सकता है।
घर से बाहर किसी अन्य शहर जाने के बाद आपको ऐसी खाने की वस्तु चुनना है, जो कम खराब हो। एकदम सादा एवं सात्विक भोजन मिले, तो अपने आप को भाग्यवान समझिए। परंतु भारत के 90% लोग इस मामले मे भाग्यशाली कतई नही है, यह निश्चित है। इसलिए ऐसे अन्न का सेवन आपको करना है, जो आपके शरीर को कमसे कम नुकसान पहुँचाये और जिस नुकसान की क्षतिपूर्ति भी सहजता से हो।
जैसे सुबह के नाश्ते मे इडली, डोसा जैसे फर्मेंटेड आहारपदार्थ खाने की बजाए 2-4 केले खाये जा सकते है। दूध के साथ बिस्किट लिए जा सकते है। जहा आलू का परोठा मिलता हो, वहा बिना चटनी या दही के आलू-परोठा खाना चाहिए। क्योंकि व्यापारिक स्तर पर बनाए हुए चटनी मे 100% रासायनिक प्रिझर्वेटिव्ह डाले हुए रहते ही है। अगर अन्य कुछ भी न मिले, तो चाय के साथ बिस्किट या खाखरा जरूर खाया जा सकता है। सुबह सुबह फलों का रस मिलना तो संभव नही होता इसलिए पैकेज्ड जूस का भी सेवन तले हुए तथा अन्य संकीर्ण खाद्य पदार्थों की अपेक्षा कई गुना अच्छा होता है। अतःएव जहाँ सात्विक नास्ता न मिले वहाँ इन पैकेज्ड फलरसों का निश्चित सेवन किया जा सकता है। आधुनिक भारत की यही विशेषता है की आपको तामसिक अन्न की उपलब्धि सात्विक अन्न की अपेक्षाकृत जल्दी हो जाती है।
किसी व्यापारिक हेतुवश अगर वारंवार बाहर जाना हो, तो ऐसे वक्त संभव हो तब तक हर वक्त घर से कुछ बनाकर साथ ले जाना चाहिए। नाश्ते में पोहे का चिवड़ा, मुरमुरे/ममरा चिवड़ा, सकरप्यारे, बाहर का ताजा खाना खाने की बजाए घर का बनाया हुआ एक रात का बाँसा खाना कभी भी अच्छा होता है। क्योंकि घर के खाने की गुणवत्ता के बारे में आप कन्फर्म होते हो, लेकिन बाहर के खाने की पवित्रता पर जरा भी विश्वास नही किया जा सकता। फिर भले ही आपका खाना 5 स्टार होटल से ही क्यों न आया हो।
दोपहर या शाम को बाहर के खाने मे अगर सब्जी, पूरी, पनीर जैसे पदार्थ हो, तो सिर्फ दाल-चावल तो खायी जा सकती है। दाल मे निम्बू, टमाटर डालकर बहोत खट्टा किया हो, तो चावल के साथ कम खट्टी और कम तीखी सब्जी खायी जा सकती है। इस तरह घर से बाहर जाने के बाद तरतमत्व के सिद्धान्त का उपयोग कर आपको कम हानिकारक पदार्थों का सेवन करना चाहिए और घर लौटने के बाद 'सद्योविरेचनम' जैसे लघु पंचकर्म प्रक्रिया को अपनाकर शरीर शुद्ध किया जा सकता है।
ध्यान रहे, उपरोक्त लेख में कुछ ऐसे खाद्यपदार्थ खाने की सलाह दी है, जिन्हें दैनिक सामान्य जीवन मे सेवन करने का आयुर्वेद निषेध ही करता है। फिर भी परिस्थिति की नजाकत एवं उनके सेवन से होनेवाले लाभ नुकसान को ध्यान में रखकर ही उनका सेवन करना चाहिए।
अस्तु। शुभम भवतु।
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