Vaidya Somraj Kharche, M.D. Ph.D. (Ayu) 31 May 2018 Views : 1836
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ए.सी. - उपयुक्त या हानिकारक?

ए.सी. मतलब एयर कंडीशनर। यह आज एक 4 - 5 साल का बच्चा भी जानता है। इसका कारण है ए. सी. की हर घर मे सुलभता। आज ज्यादातर मध्यमवर्गीयों के घरों मे भी ऐसी के दर्शन होते है। ए.सी. कोई सिर्फ धनसंपन्न लोगों का एकाधिकार नही रहा।

आजकल ए.सी. वैसे प्रतिष्ठा प्रदर्शन का द्योतक (Status Symbol) भी माना जाता है। इसलिए ए.सी. लगाने से फायदा होता है या नुकसान, इसका कुछ लोगों को लेना देना नही रहता। उन्हें सिर्फ ए.सी. चाहिए होता है।

ए.सी. यह सुख सुविधा का साधन माना जाता है। आज का युवक अगर यथोचित रूप से धनसंपन्न है तो वह या तो शादी के पहले ही घर मे ए.सी. फिट कराता है या फिर शिशु-आगमन से पहले। शादी से पहले या बाद मे भी लगा नही सका तो भी शिशु-आगमन से पहले, वो येनकेन प्रकारेण धन जुटाकर ए.सी. फिट करा ही लेता है। क्योंकि हमने तो इतनी गर्मी सह ली, परंतु मेरा बच्चा इतनी गर्मी कैसे सहन कर पायेगा? इस विचार से वह बेचैन हो जाता है और ए.सी. फिट करवा ही लेता है।

परंतु क्या ऐसा करके आप उचित कर रहे हो?

प्रायः इस दृष्टिकोण से आपने कभी सोचा नही होगा और सोचा भी होगा तो आप जानबूझकर क्षणिक लाभ के लिए उसकी उपेक्षा कर रहे होंगे। पर अगर आप ऐसा कर रहे हो, तो विश्वास रखिये आप अपना बहोत नुकसान कर रहे हो। ए.सी. से नुकसान हो सकता है, यह न शायद आपने कभी सोचा होगा, न सुना या देखा होगा। परंतु सत्य यही है। आइये इस पहलूँ पर चर्चा करते है।

ए.सी. यह श्वसन संस्थान के व्याधि तथा त्वचारोग होने के अनेक कारणों में से एक मुख्य कारण है। किन्तु यहाँ विशेषता यह है की केवल एक या दो बार ए.सी. का उपयोग करने से कोई  श्वसन संस्थान के व्याधि अथवा त्वचा का व्याधि नही होता। उसके लिए ए.सी. का निरंतर उपयोग आवश्यक है और आजकल लोगो द्वारा ए.सी. का नियमित उपयोग बढता ही जा रहा है।

ए.सी. शुरू करने के बाद धीरे धीरे कमरे की हवा ठंडी होना शुरू हो जाती है और उस कमरे की आर्द्रता भी कम होना शुरू हो जाती है। मतलब हवा धीरे धीरे रुक्ष हो जाती है। फलस्वरूप उस कमरे मे स्थित व्यक्ति का शरीर भी ठंडा और रुक्ष होना शुरू हो जाता है। बाह्य वातावरण के तापमान की अपेक्षा शरीर का तापमान कम हो जाता है। मस्तिष्क (Brain) अब शरीर के इस तापमान को नियंत्रित करने लगता है और उसे स्थिर रखने की कोशिश करता है। परंतु स्थिर तो तभी रहेगा न जब आप उसी एसी वाले कमरे में पूरे दिनभर रहोगे। जो ज़रा भी संभव ही नही। क्योंकि हमारा घर या आफिस ये centralized AC नहीं रहता। संडास, पेशाब के लिए हमे बाहर तो जाना ही पडता है या फिर कोई मोबाइल कॉल आया और नेटवर्क न आ रहा हो तो आपको ऑफिस से बाहर जाना ही पड़ता है। फिर जैसे ही आप ए.सी. से बाहर जाओगे मस्तिष्क, त्वचा के द्वारा आजूबाजू के वातावरण मे हुए बदलाव को भाँप लेता है और तुरंत ही फिर शरीर का तापमान बाहर के तापमान के अनुरूप करने की प्रक्रिया शुरू कर देता है। अब मस्तिष्क ये अनुकूलन की प्रक्रिया जैसे ही शुरू कर देता है, तब तक आप फिर से मोबाइल कॉल पूरा करके बाहर की गर्मी से ए.सी. वाले कमरे मे प्रवेश कर लेते है। अब अचानक से तापमान में हुआ ये बदलाव फिर से मस्तिष्क को भ्रमित कर देता है की अब शरीर को ठण्डा रखे या गरम?

एक घटनाक्रम के उदाहरण से इस तंत्र को समझने का प्रयत्न करते है। समझो आप के बॉस ने ऑफिस मे आपको कुछ काम दिया। बॉस की आर्डर मिलते ही आपने काम शुरू कर दिया। परंतु काम जैसे ही 10-20% हुआ कि बॉस ने पहला काम कैंसिल करके दूसरा काम दिया। मतलब पहला तो पूरा हुआ नही और नया काम आ गया। अब आप फिर से आपने आप को दूसरे काम के लिए तैयार करते हो और दूसरा काम करना शुरू कर देते हो। अब दूसरा काम भी थोडा पूरा हुआ नही की बॉस की आर्डर आती है की अब यह नही, पहलेवाला काम ही शुरू रखना है। ऐसे वक्त आप को बॉस का भयंकर गुस्सा आता है। पर चूँकी आप बॉस को बोल नही सकते, इसलिए आप चुपचाप फिर से पहला काम शुरू कर देते हो। काम के स्वरूप का ऐसा ही क्रम अगर सतत शुरू रहा, तो कुछ महीनों/सालों बाद आप तंग आकर या तो अपना नियंत्रण खोकर बॉस पर गुस्सा हो जाओंगे या फिर नोकरी छोड दोगे और अगर काम करने की मज़बूरी ही है तो काम को उचित तरीके से नहीं करोगे।

मनुष्य शरीर के लिए भी यही नियम लागू पडता है। जब आप ए.सी.कमरे मे होते हो, तो मष्तिष्क अपने शरीर की सभी बाह्य एवं अभ्यंतर प्रक्रियाओं को ठण्डे वातावरण के हिसाब से ढालता है। परन्तु जैसे ही आप ए.सी. कमरे से बाहर की गर्मी में जाते हो, मस्तिष्क इस बदलाव का संज्ञान लेकर शरीर की सभी संलग्न प्रक्रियाओको फिर से गर्मी के हिसाब से ढालना शुरू कर देता है। अगर इसी दरम्यान फिर से ए.सी.के वातावरण मे गये, तो फिर से मष्तिष्क को अपनी रणनीति बदलनी पडती है। अब आप जैसे अपने बॉस की वारंवार बदलती आर्डर से खिजकर उनके द्वारा दी हुई किसी भी आर्डर को पहली बार मे अनदेखा करते हो (late action) या तो काम ठीक तरह से नही करते (Autoimmune disease ) या फिर पूरा काम ही बिगाड़ देते हो। बस इसी तरह मस्तिष्क भी एडजस्ट करने की कोशिश करता है। पर ऐसा ही शीतोष्ण व्यत्यास अगर सतत चलता रहा तो यथार्थ रूप में करना क्या है यही उसे पता नहीं चलता।

वारंवार बदलते हुए तापमान की वजह से मस्तिष्क, शरीर की बाह्य तथा आभ्यंतर प्रक्रियाओं को योग्य तरीके से संयोजित करनेवाले रसायनों का स्त्रवण कर नही पाता अथवा गलती से ठण्डे वातावरण की जगह, गर्मी से समायोजित (adjust) करनेवाले रसायन स्त्रवित कर देता है। परिणामस्वरूप त्वचा की व्याधिप्रतिकारक क्षमता (immunity) कम होना शुरू हो जाती है।

अधिकतर समय ए.सी. मे रहने की वजह से पसीने का भी अवरोध होता है। पसीना आने की प्रक्रिया त्वचा स्वस्थ बने रहे इसलिए अत्यावश्यक है। परंतु ए.सी. की वजह से यह प्रक्रिया भी बाधित हो जाती है। इसलिए भी त्वचा की रोगप्रतिकारक क्षमता का ह्रास होता है। यही कारण है की आजकल दाद, खाज, खुजली जैसे अत्यंत क्षुद्र रोग भी दीर्घकाल चलते है।

ए.सी. की वजह शरीर मे मूत्र निर्मिती भी कम होती है। मतलब पसीना और मूत्र निर्मिती जो शरीर की स्वछता के लिए अत्यावश्यक है, उनकी उत्पत्ती मे ही बाधा उत्पन्न होती है। इसलिए मूत्राशय का कैन्सर होने की संभावना रहती है।

जिन बच्चों को बचपन से ही ए.सी. मे रहने की आदत होती है। उन बच्चों की त्वचा इतनी संवेदनशील (Hypersensitive) हो जाती है कि सिर्फ सूर्यप्रकाश की वजह से भी उनकी त्वचा मे प्रतिक्रिया (reaction) उत्पन्न होती है। ऐसे बच्चों को मच्छरों के काटने से भी त्वचा लाल हो जाती है कि मानो कोई बडा त्वचारोग हुआ हो ऐसा लगता है। उपरोक्त सभी चर्चा का आशय यही है की ए.सी. का उपयोग टालना ही स्वास्थकर होता है।

फिर भी अगर मज़बूरी से (ऑफिस जैसे जगह पे ) ए.सी. का उपयोग करना ही पड़े तो निम्नलिखीत सावधानियों का पालन करना चाहिए।

  1. ए.सी. 25° से 27° के बीच ही चलाना चाहिए।
  2. ए.सी. की हवा सीधी आपके शरीर पर नही आनी चाहिए इसका ध्यान रखना चाहिए।
  3. 1 घण्टे से ज्यादा ए.सी. चलाना नही चाहिए। 1 घण्टे के बाद ए.सी. बंद कर पंखे का उपयोग करना चाहिए।
  4. ए.सी. वाले कमरे से बाहर निकलना हो, तो तुरंत बाहर नही निकलना चाहिए।
  5. ए.सी.वाले कमरे को लगकर जो नॉन- ए.सी. कमरा है, उसमे शरीर का तापमान सामान्य होनेतक रुकना चाहिए। उसके बाद ही कमरे से बाहर जाना चाहिए।

अस्तु। शुभम भवतु।