क्या भारत मे शूज पहनना चाहिए?
लेख का विषय पढकर आपको शायद अटपटा लगे। क्योंकि आपने कभी इस बारे मे सोचा ही नही होगा। परंतु स्वास्थ्य से संबंधित कुछ चिंताओं के कारण सच मे यह विषय चिंतनीय है।
ब्रिटिश आने से पहले भारतीय लोग लकडी से बनी खडाऊँ या जूते (चप्पल) पहनते थे। योद्धा जूती पहनते थे। परंतु आज ज्यादातर लोग शूज (बूट) पहनते है। शूज पहनना सभ्यता का लक्षण माना जाता है। परंतु वस्तुरूप मे ऐसी हमारी सोच हम भारतीयों की मानसिक गुलामी दर्शाता है। कई कॉर्पोरेट ऑफिसों मे तो शूज पहनना अनिवार्य होता। अगर कोई स्वास्थ्य से संबंधित कारणों की वजह से शूज पहनने को ना बोले, तो भी यह स्वीकार नही किया जाता।
तो क्या सच मे शूज पहनने की इतनी आवश्यकता है?
क्या सच मे भारतीयों को शूज पहनना चाहिए ?
उत्तर स्पष्ट है - नही
आयुर्वेद मे जीवन से संबंधित हर पहलू पर गंभीर सोचविचार किया गया है। उसमे जूते पहनना या नही पहनना उसपर भी आयुर्वेद के आचार्यों ने अपने विचार प्रकट किये है। आयुर्वेद के अनुसार शरीर रक्षणार्थ जूते पहनने ही चाहिए। परंतु यहाँ जूतों से आज की चप्पल, स्लिपर या जूती अपेक्षित है। शूज (बूट) नही।
भारत यह एक उष्ण कटिबंधीय देश है। गर्मी के दिनों मे भारत का औसतन तापमान 44℃ से 48℃ जितना रहता है। ऐसी उबलती गर्मी मे पैरो को मोजे (socks) पहनकर उपर से शूज पहनने से पैरो का तापमान जबरदस्त बढता है। पैरो की अंगार होती है। ऐसे लगता है की मानो पैर जलती भट्टी मे रख दिये हो।
आयुर्वेद के अनुसार दृष्टि (Vison) का प्रसादन (मतलब नेत्रज्योति का पोषण) करनेवाली एक नाडी पैरों मे होती है। जिसे दृष्टिनिबंधिनी नाड़ी कहते है। ठण्डे पानी से पैर धोना या हरे घास पर चलना अथवा गाय का घी काँसे की कटोरी के आधार (Base) से पैरों के तलुओं पर घिसने से इस नाड़ी के द्वारा नेत्रज्योती (vision) का पोषण होता है। प्रसादन होता है। आंखों को बल मिलता है। आधुनिक शरीरशास्त्र विज्ञानने आज नेत्रदीपक प्रगती की है। परंतु उन लोगों को भी आजतक आँखों (eyes) का पैरों से संबंध जोडनेवाली कोई Nerve या Artery मिली नही है। परंतु आयुर्वेद के ऋषी-मुनियों ने यह बात हजारो वर्ष पूर्व ही स्पष्टरूप से कह ही है।
पैरों को पूर्ण दिनभर शूज मे रखने से जो भयंकर उष्णता उत्पन्न होती है, उस उष्णता से यह दृष्टिनिबंधिनी नाडी आहत होती है और उसके नेत्रपोषण कर्म में बाधा उत्पन्न होती है। फलस्वरूप नेत्रदृष्टि शनैः शनैः दुर्बल होती है। इसलिए आजकल हम देखते है की छोटे छोटे बच्चों मे भी चष्मा लगा हुआ होता है।
आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य की दृष्टी(vision) उम्र के 60 वर्ष के बाद ही दुर्बल होती है। परंतु आज की स्थिती तो इससे एकदम विपरीत है। बाल्यावस्था में ही चश्मे की जरूरत पड़ती है। इस विपरीत स्थिती के अनेक कारणों मे से शूज पहनना एक मुख्य कारण है। इसलिए भारतीयों को भारत मे रहते हुए शूज नही पहनना चाहिए। चप्पल, स्लीपर्स, सैंडल इनका उपयोग किया जा सकता है। ये चारो बाजू से खुली होती है, इसलिए इनको पहनने से इतनी उष्णता उत्पन्न नही होती।
अस्तु। शुभम भवतु।
SwamiAyurved