सिद्ध एरण्ड तैल की विविध व्याधियों में कार्मुकता - भाग 2
एरंड तैल एक अत्यंत साधारण औषधी है। फिर भी अगर उसका उचित तरीके से उपयोग किया जाए तो यह बड़े बड़े व्याधियों में भी उत्कृष्ट कार्य करती है।
विषमज्वर -
विषमज्वर अर्थात टायफॉइड जैसे बुखार। टायफॉइड आने के बाद रोगी अत्यंत दुर्बल हो जाता है। पाचनशक्ति इतनी अशक्त हो जाती है कि एकदम हल्का खाना भी पचाने में मुश्किल हो जाता है। इसका कारण है टायफॉइड के लिए कारणीभूत जंतुओं की आंत्र में उपस्थिती। स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैल तो ऐसी स्थिती में 'न भूतो न भविष्यति' ऐसा कार्य करता है। रोगी के शरीर बलानुसार सिद्ध एरंड तेल उसे सप्ताह में एक बार पिलाना चाहिए। शरीर बल उत्तम है तो 4 से 6 चम्मच तक पिलाया जा सकता है। परंतु रोगी अगर बहोत दुर्बल है तो 1 चम्मच से शुरुआत कर जैसे जैसे बल बढ़े वैसे 2-3 चम्मच तक ले जाया जा सकता है। हर 3 दिन के अंतराल से सिद्ध एरंड तैल रुग्ण को काले मुनक्के के सूप के साथ पिलाना चाहिए। इससे टायफॉइड के लिए कारणीभूत जंतु (Salmonella typhii) आंत्र से निकल जाते है। पित्ताशय तथा किडनी से भी उनकी उपस्थिती बहोत कम हो जाती है। परिणामस्वरूप रुग्ण का पाचनतंत्र सबल होकर अन्न का परिपाक ठीक होकर रुग्ण को धीमे धीमे बलप्राप्ति होने लगती है।
टायफॉइड का रुग्ण व्याधी संक्रमण के पश्चात एक ही सप्ताह के अंदर बहोत दुर्बल होता जाता है, ऐसी स्थिती में सिद्ध एरंड तेल से अतिसार (Diarrhea) होकर रुग्ण और दुर्बल हो जाएगा ऐसी शंका आना स्वाभाविक है। इसलिये सिद्ध एरंड तैल की मात्रा रुग्ण के बलानुसार कमसे कम 1 चम्मच लेनी चाहिए। इस 1 चम्मच सिद्ध एरंड तैल से जैसे ही जंतुओं की संख्या कम हो जाती है, रुग्ण की पाचनशक्ति बढ़कर बल भी बढ़ता है। तब सिद्ध एरंड तैल की भी मात्रा बढ़ाते जाना चाहिए। टायफॉइड में सिद्ध एरंड तैल का यह प्रयोग रुग्ण को अक्षरशः संजीवनी देता है।
मलेरिया में भी सिद्ध एरंड तैल ऐसा ही काम करता है। फर्क इतना है कि टायफॉइड का निदान होते से ही सिद्ध एरंड तैल देना चाहिए और मलेरिया में बुखार के अंत मे अर्थात बुखार उतरने के 7-8 दिनों के बाद देना चाहिए।
डेंग्यू मच्छरों से होनेवाला बुखार है। परंतु बाद में उसमे भी पित्तप्रकोप तो होता ही है। इसलिये डेंग्यू जैसे बुखार में भी पूर्णतः ज्वर उतरने के बाद प्रकुपित पित्तनिष्कासन के लिए सिद्ध एरंड तैल से सद्योविरेचन कराना चाहिए।
हृद्रोग -
हृदयरोग का प्रमाण आज बहोत बढ़ा है। 25-30 जैसी छोटी उम्र में भी हार्ट अटैक के केसेस देखने मे आते है। इसका मुख्य कारण आज की पीढ़ी का जंकफ़ूड प्रेम और आहारविहार के नियमो की धज्जियाँ उड़ाना है। स्वामीआयुर्वेद सिध्द एरंड तैल ऐसे हृदयरोगों में अच्छा काम करता है। परंतु प्रत्यक्ष हृद्रोग होने से पहले अगर प्रत्येक महीने में एक बार सिद्ध एरंड तैल से सद्योविरेचन कराया जाए तो हृद्रोग होने से निश्चित रूप से बचा जा सकता है। वही प्रत्यक्ष हृद्रोग होने के बाद सिद्ध एरंड तैल के कार्यक्षेत्र में मर्यादाये आती है, फिर भी फायदा तो होता ही है। एनजाइना पेक्टोरिस जैसे वातज हृद्रोगों में रोज भोजन के बाद 1 चम्मच सिद्ध एरंड तैल काले मुनक्के के सूप के साथ पीने से एनजाइना पेक्टोरिस के वेग (Attack) आने में राहत मिलती है। डायबिटीज हो तो काले मुनक्के के सूप की जगह आपके वैद्यराज द्वारा सूचित औषधी का अनुपान लेना चाहिए।
सिद्ध एरंड तैल गुडूची एवं शुंठी से साधित किया हुआ होने से उत्कृष्ट आमपाचक है। हृदय की रक्तवाहिनियों में मल संचित होकर जब अवरोध (blockage) उत्पन्न होता है, तब इस आमपाचक गुण का का अच्छा कार्य दिखता है। परंतु ध्यान रहे, 80% से अधिक अवरोध हो तो यह आमपाचक कर्म इतना खास दिखाई नही पड़ता।
पृष्ठशूल, कटिग्रह गुह्यशूल -
आजकल पीठ दुखना एक सामान्य बात हो गयी है। जिसका अधिकतम कारण दो मनको के बीच की गद्दी सूखना या फिर उसकी स्थानच्युति होना होता है। दोनों कारणों से वहां से निकलने वाली नर्व दबकर सूज जाती है और इसकी वजह से रुग्ण को पीठ में वेदना और कमर में जकड़न दोनो महसूस होती है। सिद्ध एरंड तैल तो इस अवस्था की 'प्रशंसित औषधि' है। अकेला सिद्ध एरंड तैल रोज 1 चम्मच सुबह शाम या फिर किसी भी वातहर क्वाथ के साथ धैर्यपूर्वक सेवन करने से निश्चितरूप से कुछ दिनों में लाभ मिलता ही है। सुबह सुबह में कमर में जो जकड़न रहती है, उसमे तो सिद्ध एरंड तैल के सेवन से अद्भुत परिणाम मिलते है।
गुह्यशूल अर्थात गुदभाग में होनेवाली वेदना। बवासीर, फिशर जैसे रोगों में गुद भाग में वेदना होती है। ऐसी स्थिती में सिद्ध एरंड तैल अल्प मात्रा में हर एक दिन के अंतराल से लेना चाहिए। ऐसा करने से वेदना कम होती है। परंतु ध्यान रहे गुद में वेदना की सिद्ध एरंड तैल यह एक सहायक औषधी है, न कि मुख्य औषधी। इसलिये गुदशूल में इसका अन्य औषधियों के साथ ही उपयोग करना चाहिए।
आध्मान, विबंध -
आध्मान अर्थात गैस से पेट फूल जाना और विबंध अर्थात कब्ज। ऐसी स्थिती में शुरुआती चिकित्सा में सिद्ध एरंड तैल का काले मुनक्के के गरम सूप के साथ खाने के 5 मिनट पहले उपयोग करना चाहिए। अत्यंत उत्साहवर्धक परिणाम मिलते है। फायदा होने के बाद सिद्ध एरंड तैल बंद कर देना चाहिए।
हाइपोथायरायडिज्म की वजह से शरीर पर रहनेवाली सूजन -
प्रायतः देखा जाता है कि जिन्हें हाइपोथायरायडिज्म होता है उनके शरीर पर थायरोक्सिन की गोली शुरू होने के बावजूद भी सूजन रहती ही है। शरीर मे आलस्य बना रहता है। वजन भी बढ़ता ही रहता है। ऐसी स्थिती में सिद्ध एरंड तैल 1 चम्मच रोज खाने के बाद गर्म पानी के साथ लेना चाहिए और जैसे सूजन उतर जाए बंद कर देना चाहिए।
रीनल फैल्युअर में होनेवाली कब्ज -
रीनल फैल्युअर एक प्रगतिशील व्याधी है। धीमे धीमे आगे बढ़ता रहता है। लोग ऐसी अवस्था मे सालोंसाल डायलिसिस करते है। पर जैसे जैसे डायलिसिस का समय बढ़ता रहता है वैसे वैसे रुग्ण को कब्ज, गैस, बारबार डकार आना जैसी समस्याएं शुरू हो जाती है। सिद्ध एरंड तैल का 1 चम्मच की मात्रा में भोजनपूर्व उपयोग इन समस्याओं से कई हद तक राहत दिलाता है।
कामला -
कामला अर्थात पीलिया अर्थात jaundice। कामला के लक्षण दिखते से ही स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैल से सद्योविरेचन करवाना चाहिए। बाद में रोज सुबह शाम 1 चम्मच गरम पानी अथवा कोई सहायक औषधी के साथ लेना चाहिए। शतप्रतिशत लाभ होता ही है। तुरंत बिलीरुबिन लेवल कम होकर भूख खुलती है और उत्साह प्राप्ती भी होती है। कामला अथवा तत्जन्य उपद्रवों की यह अव्यर्थ औषधी है।
कील - मुँहासे -
कील मुँहासे अधिकतम 14 से 22 की उम्र के बच्चों में ज्यादा देखने को मिलते है। इस उम्र के बच्चे जंक फूड खाने के बड़े शौकीन होते है। इसलिये इनके पाचनक्रिया में मल का ज्यादा निर्माण होता है परंतु इसी आदत के चलते उसका सम्यक निष्कासन न होकर कब्ज निर्माण होता है। यह कब्ज पुनः रसदुष्टि कर कील मुँहासों को बढ़ावा देता है। स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैल सेवन के बाद कब्ज दूर करके पेट पूर्ण साफ करता है। सामता का पाचन करके रसदुष्टि को दूर करता है। इसलिये कील मुँहासों में स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैल उत्कृष्ट कार्य करता है। पूरा चेहरा कील मुँहासों से भरा हो तो रोज खाने के बाद 1 चम्मच सिद्ध एरंड तैल काले मुनक्के के सूप के साथ पीना चाहिए और कील मुँहासों को व्यापकता कम है तो सप्ताह में एक बार कभी भी 4 से 6 चम्मच पीकर पेट साफ रखना चाहिए। लाभ होता ही है।
मुखदुर्गंधि -
बातचीत करते वक्त कुछ लोगो के मुँह से इतनी खराब गंध आती है कि उनसे बात करने की इच्छा ही नही होती। सामान्यतः यह लक्षण तब उत्पन्न होता है जब यकृत आलसी हो चुका हो या बहोत ज्यादा काम करने की वजह से थका हुआ हो। शास्त्रोक्त शब्दो मे कहे, तो जब पाचन संस्थान में सामता बढ़ी हो। ऐसे वक्त स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैल आमपाचन का कार्य कर इस लक्षण को बखूबी दूर करता है। रोज एक चम्मच खाने के बाद 1 कप काले मुनक्के के सूप के साथ देने से 15-20 दिनों में ही यह लक्षण दूर होता है।
रसायन
एरंड तैल रसायन गुणोंवाला भी है। उसमें भी स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैल गुडूची, शुंठी जैसे रसायन द्रव्यों से सिद्ध है। मतलब स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैल में रसायन गुण का प्रकर्ष है। परंतु स्वस्थावस्था में यह नित्यरसायन नही है। इसलिये महीने में एक बार पेट साफ करने के लिए इसका जरूर उपयोग करना चाहिए। जिससे पेट साफ होने के साथ साथ उसके रसायन गुणों की उपलब्धी भी होगी। आदर्शरूप में इच्छनीय है कि ऐसा हर महीने लेना चाहिए। परंतु अधिक कार्यव्यस्तता हो तो कमसे कम 2 महीने में एक बार सद्योविरेचन करना ही चाहिए। ऐसा नियमित करने से वृद्धावस्था में प्रोस्टेट से संबंधित विकार नही आते। पार्किंसन, अल्जाइमर भी नही होता एवम वृद्धावस्था सुलभ अन्य विकार भी दूर ही रहते है।
उपरोल्लिखित व्याधियों के सिवा भी, अन्य कई व्याधियों में स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैल का युक्तिपूर्वक उपयोग किया जा सकता है। अस्तु। शुभम भवतु।
महत्वपूर्ण सूचना : स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैल के नियमित उपयोग से रोज 5-6 बार पतली संडास होना सहज है। परंतु ऐसा सिर्फ पहले 15-20 दिनों के लिए ही होता है। बाद में सिद्ध एरंड तैल का पाचन होकर उससे द्रवमलप्रवृत्ति नही होती।
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