सिद्ध एरंड तैलम की विविध व्याधियों में कार्मुकता
आमवात एक जोड़ो के दर्द का व्याधि है। साधारण बोलचाल की भाषा मे इसे गठिया कहते है। इंग्लिश में Rheumatoid arthritis के साथ इसकी तुलना की जाती है। आमवात में एरंड तैल की उपयोगिता निर्विवाद सिद्ध है। संशय से परे है। चरक सुश्रुतादि आचार्यो के प्राचीन काल से ही एरंड तैल का वातव्याधियों में उपयोग होता आ रहा है, इसका कारण, एरंड तैल का सूक्ष्म स्रोतोगामीत्व (Penetrability at microcellular level) है। इसलिये एरंड तैल अपने उष्ण एवं तीक्ष्ण गुणों से सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्तर तक जाकर अग्निवर्धन कर धातुगत आम का पाचन करता है। इस आमपाचन कर्म कि वजह से शरीर मे कही भी आम के कारण वेदना (Pain) होगी तो उसका तत्काल शमन होता है। आधुनिक भाषा मे कहे तो जहाँ CRP बढ़ा होगा वहां एरंड स्नेह शोधन एवम शमन मात्रा में उत्तम कार्य करता है, फिर चाहे वह आमवात हो, Dermatomyositis हो या फिर Systemic lupus erythimatosus जैसी कोई कनेक्टिव टिश्यू डिसऑर्डर ही क्यो न हो।
आयुर्वेद के अनुसार एरंड तैल स्वाद में मधुर होता है। शायद यह पढ़कर आपकी हँसी रुकेगी नही। पर यह सत्य है। उसके अप्रिय गंध की वजह से यह मूल स्वाद (Original taste) की हमे किंचित भी प्रतीती ((Experience) नही होती। यह पाचन में थोड़ा भारी तथा कफ बढ़ानेवाला होता है। सभी स्नेहविरेचक द्रव्यों में तो एरंड तैल उत्तम औषधी है। इसलिये एरंड तैल को तिक्त, कटु रसात्मक गुडूची और शुंठी से अगर सिद्ध किया जाए तो वह पाचन में पहले की तुलना में हल्का हो जाता है। उसका कफ बढ़ानेवाले गुणधर्म में कमी आती है और इसलिये सिद्ध एरंड तैल से विरेचन एकदम बढ़िया तरीके से होता है। संक्षिप्त में कहे तो गुडूची एवम शुंठी से सिद्ध करने के पश्चात एरंड तैल की कार्यक्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि होती है।
स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैलम इसी संकल्पना का मूर्त रूप है। ऊपर से स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैलम शास्त्र के आदेशानुसार (घृतं तैलम साधयेत न एक वासरे।) पूरे 3 दिन तक सिद्ध किया जाता है। इसलिये इसमे शुंठी तथा गुडूची के गुणों का प्रकर्ष देखने को मिलता है। यह अल्प मात्रा में ही उत्तम कार्य करता है।
शुंठी गुडूची सिद्ध होने से वृद्ध आमवात (Advanced Rheumatoid Arthritis) में जो हाथ तथा उंगलियों में टेढ़ापन आता है, वह कई हद तक कम होने में मदद मिलती है। संधियों की कार्यक्षमता (Radius of movement) बढ़ती है। सूजन (Swelling) तथा प्रातःकालीन संधिस्तब्धता (Morning Stiffness) कम हो जाती है। परंतु इसके लिए स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैलम का सतत एवम नियमित मात्रा में सेवन आवश्यक है।
सामान्य व्यक्ति (Layman, Non medico) के मन मे यहां एक सहज प्रश्न उपस्थित होता है कि एरंड तैल नियमित कैसे ले सकते है? क्या इसे नियमित लेने से दिनचर्या बाधित नही होगी? बार बार शौच के लिए नही जाना पड़ेगा? मार्केटिंग के लिए जो लोग सतत प्रवास में रहते है, उनके लिए यह कैसे अनुकूल रहेगा? ऑफिस टाइम में बार बार शौच के लिए जाना अच्छा भी नही लगता और काम पर ध्यान भी केंद्रित नही कर सकते। तो ध्यान रखे, नियमित एरंड तैल लेने से ऐसा जरूर होता है पर अधिकतम 15 से 20 दिनों के लिए। मतलब 15 से 20 दिनों के बाद बार बार शौच नही जाना पड़ता, पहले की तरह दिन में 1 या 2 बार शौच होती है। इस कालावधी के बाद में यह एरंड तैल शरीर को सात्म्य हो जाता है और ऐसा होनेपर ही उसका वास्तविक कार्य शुरू होता है।
इस तरह जब एरंड तैल से विरेचन होना बंद होता है, तभी धातुओं के स्तर पर उसके आमपाचन की क्रिया का आरंभ होता है और जैसे जैसे यह आमपाचन होता है, वैसे वैसे वेदना कम होती जाती है और कुछ दिनों के बाद वेदना का पूर्णतः शमन (pacification) होता है। आधुनिक वैद्यकशास्त्र के वेदनाशामक औषधियों से स्वामीआयुर्वेद एरंड तैल का उपयोग कई गुना लाभदायक है। ऊपर से कोई दुष्प्रभाव नही।
एरंड तैल स्वाभाविक रूप से ही योनिविशोधन तथा शुक्रविशोधन होता है। उत्तम संतति निर्माण के लिए इन दोनों कर्मो की आवश्यकता होती है और आजकल तो विशेष रूप से। क्योंकि आजकल के युवाओं का आहारविहार ही दूषित होता है। अतिमात्रा में सतत फास्टफूड का सेवन करते है, जिससे शरीर के अन्य धातुओं के साथ साथ शुक्रधातु भी दूषित होता है। इसलिये विवाहोपरांत स्त्री और पुरूष दोनो में गर्भाधान करने से पहले योनिविशोधन तथा शुक्रविशोधन कर लेना अत्यावश्यक होता है। गुडूची और शुंठी से एरंड तैल सिद्ध करने से उसके यह दोनो कर्म उचित रूप से साध्य होते है।
एरंड तैल वयस्थापक (Anti ageing) तथा स्थिर गुणात्मक है। गुडूची से एरंड तैल का साधन (Processing) उसके इन गुणकर्मो मे वृद्धि करता है। प्रत्येक महीने में सिद्ध एरंड तैल से मृदुसंशोधन करने से यह वयस्थापनकर गुण निश्चितरूप से दिखाई देता है। इसलिये चिकित्सा में पूर्ण लाभ की प्राप्ती के लिए सिद्ध एरंड तैल का ही उपयोग करना चाहिए।
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