Vaidya Somraj Kharche, M.D. Ph.D. (Ayu) 12 Jul 2018 Views : 2128
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कुँवारपाठा - गलत प्रचार और तथ्य

कुँवारपाठा मतलब एलोवेरा (Aloe vera)। इसे घीकुंवार, ग्वारपाठा के अन्य नाम से भी जाना जाता है। संस्कृत मे इसे कुमारी कहते है। आज भारतवर्ष मे आयुर्वेद के नामसे बहुराष्ट्रीय कंपनीयो ने कुँवारपाठे की नदियाँ बहा दी है। कुँवारपाठे का इतना प्रचार प्रसार किया गया की आज एक साधारण सा अनपढ आदमी भी कुँवारपाठे को जानता है, परंतु कुँवारपाठा के नाम से नही, बल्कि एलोवेरा (Aloe vera) के नाम से। एलोवेरा के आज भले ही कुमारीआसव, कन्यालोहादि वटी, रजःप्रवार्तिनी वटी जैसे अनेक आयुर्वेदीक कल्प उपलब्ध हो, परंतु एलोवेरा यह मूलतः आयुर्वेदीय वनस्पती नही है। बृहतत्रयी के नाम से आयुर्वेद के जो 3 मूलग्रंथ (चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय) माने जाते है, उनमे कही भी एलो वेरा का उल्लेख नही है। एलो वेरा यह 10 वी शती के बाद भारत मे आई हुई बाहरी वनस्पती है। उसके यहा आगमन के पश्चात ही आयुर्वेद के तत्कालीन आचार्यों ने उसके गुण-दोषो को जानकर समझकर विविध व्याधियोंपर उसका उपयोग करना शुरू किया।

आयुर्वेद के अनुसार एलो वेरा शीतल है। अग्निदग्ध मतलब जले हुए स्थान पर इसे लगाया जा सकता है। रक्तविकार जिनकी अभिव्यक्ती त्वचापर होती है, उनमे एलो वेरा अच्छा कार्य करती है। परंतु एलो वेरा का स्वरस सुबह सुबह 1 कप या 1 ग्लास पीओ ऐसा आयुर्वेद मे कही भी बताया नही। आयुर्वेद मे ऐसे स्वरस पीने की मात्रा सिर्फ 20 मिली बताई गयी है। परंतु आजकल लोग एलो वेरा के स्वरस का 1 कप (80-100 मिली) से लेकर आधा ग्लास तक पी जाते है। पहले पहले सामत्व कम होने की वजह से पीनेवाले व्यक्ती को बहोत ही हल्का महसूस होता है। परंतु दीर्घकाल पीने के बाद यही एलो वेरा का स्वरस बवासीर उत्पन्न करता है यह ध्यान रखे।

आयुर्वेद एलो वेरा को चर्मरोगों में भी उपयोगी बताता है। परंतु इसका अर्थ आभ्यंतर उपयोग से है। न कि एलो वेरा के बाह्य उपयोग से। बाह्यतः सिर्फ अग्नि से जले हुए स्थानपर ही इसे लगाने का विधान है। परंतु आजकल मार्केट मे एलो वेरा के जितने सारे उत्पाद उपलब्ध है वो सभी सौंदर्य बढाने के हेतु से बाजार मे उतारे गये है और मूलतः ग्रंथो में इसके सौंदर्यवर्धक गुणों का कही वर्णन नही किया है। अब ग्रंथो में वर्णन नही इसका मतलब एलो वेरा सौन्दर्यवर्धक नही हो सकता ऐसा नही, पर कमसे कम उपयोग करने के बाद तो उसके इन गुणों की प्रतीती आनी चाहिए। उसके इन गुणों की पुष्टी होनी चाहिए। परंतु वास्तविकता इससे परे है।

तो प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि एलो वेरा के इतने सारे नए गुणों की उपलब्धि आज के समय मे किसे और कैसे हुई?

आज भारतवर्ष में एलो वेरा के बारे में जो युद्धस्तर पर प्रचार प्रसार किया जा रहा है। इसका मूल कहाँ है?

आइये इसके बारे में कुछ व्यावहारिक पहलूँ जान लेते है।

भारत मे एलो वेरा का फैड पाश्च्यात्य देशों से आया और हम लोग यह भलीभाँति जानते है कि पाश्च्यात्य देशों मे लोग खाना खाते वक्त मुख्यतः मांसाहार ही करते है। माँसाहार ही उनका मुख्य आहार है। हम जानते है की माँसाहार गरिष्ठ होता है। पचने मे भारी होता है। माँसाहार पचाने मे शरीर की बहोत सारी ऊर्जा नष्ट हो जाती है। ऐसी स्थिती मे कोई रोज माँसाहार करने वाला व्यक्ती अगर एलोवेरा जैसे सेन्द्रिय, प्राकृतिक वनस्पति का ज्यूस (स्वरस) सेवन करे, तो जाहिर सी बात है की उस व्यक्ती को कितना हल्का महसूस होगा। उस सेन्द्रिय आहार वस्तु का पाचन उसके शरीर मे त्वरित हो जाएगा। माँस पचानेवाली उस पाचनसंस्थान को कोई वनस्पति का रस पचाना, माँस पचाने से कई गुना सरल पड़ता है। फलतः उस नित्य मांसाहारी व्यक्ति की ऊर्जा रोज की तुलना में कई गुना बच जाती है। इसलिए उस व्यक्ति को एलो वेरा के स्वरस सेवन के पश्चात शरीर हल्का, निर्मल एवम ऊर्जावान महसूस होना एकदम सामान्य बात है।

दूसरा पहलूँ यह है कि ज्यादातर माँसाहारी लोग पहले ही कब्ज से पीड़ित होते ही है और एलोवेरा का स्वरस तो सेवन करने के बाद उत्तम मलनिःसारण (भेदन) कर्म करता है। अतःएव पाश्चात्यों को एलो वेरा का स्वरस सेवन बहोत ही फायदेमंद लगा होगा और पाश्च्यात्य लोग प्रथमदृष्टया फायदा पहुचाने वाली कोई भी वस्तु के तुरंत फैन बन जाते है यह हम जानते है। इसलिए उन्होने उत्साहित होकर एलोवेरा सर्वत्र उपयोग करना शुरू कर दिया (जैसे आजकल पाश्च्यात्य देशों में सहिजन (Moringa) का उदो-उदो चालू है)

हम भारतीय तो वैसे आज भी पाश्चात्यों के मानसिक गुलाम है ही। इसलिए भारतीयों ने भी एलो वेरा का पाश्चात्यों जैसा ही स्वैर उपयोग करना शुरू कर दिया। यह प्रयोग पश्चिमी देशों से आयातीत होने की वजह से भारत मे उसका अंधानुकरण करना यह सामाजिक प्रतिष्ठा का द्योतक माना जाता है।

आयुर्वेद जिस भूमि की धरोहर है, उसी भूमि में ऐसे व्यर्थ प्रयोगों का प्रतिष्ठा संपादन करना यह भारत का अंतिमतः आयुर्वेद का दुर्दैव नही तो क्या है?

सम्प्रति आधुनिक तंत्रज्ञान इतना विकसित है की आप किसी भी वस्तु से कुछ भी बना सकते हो। यही बात एलो वेरा के साथ घटित हुई है। पाश्च्यात्यों द्वारा एलो वेरा के स्वैर उपयोग की वजह से भारतीय भी उसकी तरफ आकर्षित होकर एलो वेरा का उपयोग करने लगे है। आज बाजार मे एलो वेरा का सिर्फ स्वरस ही नही, बल्कि टाल्कम पावडर और दाँत साफ करने की पेस्ट भी मिलती है। शैम्पू, हैंडवाश, साबू भी आया है अभी अभी। पता नही लोग भविष्य मे अब एलो वेरा से क्या क्या बनायेंगे। अर्थात संक्षेप मे कहे, तो आज एलोवेरा 'सर्वरोगहर' शक्तिदायिनी कामधेनु है। दिव्यौषधि है, जो सभी व्याधियों का नाश करने मे समर्थ है। ऐसा जो चित्र आपके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है, वह गलत है।

वास्तविकता यह है कि एलोवेरा अर्थात कुँवारपाठा सिर्फ एक साधारण औषधी है, जिसका कार्यक्षेत्र अन्य औषधियों की तरह ही सीमित है। अतःएव जहा उपयोगी है, वही उसका उपयोग करना चाहिए। अन्यथा दुष्परिणाम होने मे देर नही लगती। अस्तु। शुभम भवतु।

© श्री स्वामी समर्थ आयुर्वेद सेवा प्रतिष्ठान, खामगांव 444303, महाराष्ट्र, भारत