क्या गन्ने का रस पीना हितकर होता है?
पृथ्वी पर कोई विरला ही ऐसा व्यक्ति होगा, जिसने आज तक गन्ने का रस न पिया हो। गन्ने का रस छोटों से लेकर बडों तक सबको अतिप्रिय होता है। बाजार मे गये और घूमते घूमते थक गये की सबको गन्ने का रस पीने की तीव्र इच्छा होती है। गन्ने का रस के बाद मन तृप्त होता है। शरीर मे नयी ऊर्जा का संचार होता है एवं अधिक काम करने की इच्छा उत्पन्न होती है। इसलिए गन्ने का रस सभी लोगों को प्रिय होता है। गन्ने का रस यकृत को बल भी देता है, ऐसा कहाँ-सुना भी जाता है। इसलिए भी लोग सुबह - शाम गन्ने का रस पीते है।
ग्रीष्म ऋतु (गर्मी के दिनो मे) मे तो हर 50 - 100 फीट के अंतराल पे एक रसवंती होती है। जहाँ गन्ने का रस सहजता से उपलब्ध होता है और लोग गन्ने के रस को 'हेल्दी' समझ के खूब पीते है।
परंतु क्या गन्ने का रस सच मे 'हेल्दी' है?
उत्तर सरल और स्पष्ट है - 'नही'
आयुर्वेद मे स्पष्टरूप से कहा गया है की यंत्र से निकाला गया गन्ने का रस विदाहकारक होता है। मतलब पित्त उत्पन्न करनेवाला होता है। आयुर्वेद का अतिप्रचीन ग्रंथ 'चरक संहिता' जो आज से 2000 वर्ष पूर्व लिखा गया है। उसमे यह बात स्पष्टरूप से प्रतिपादित की गई है की यंत्र से निकाला गया गन्ने का रस विदाहकारक होता है। अब 2000 वर्ष पूर्व तो आज के जैसी मशीने भी नही थी। मतलब अगर कोई यह अर्थ लेता हो की आधुनिक स्वचलित मशीनों से निकाला गया गन्ने का रस ही विदाहकारक होता है, तो यह गलत बात है। लकड़ी के चरखे से निकाला गया गन्ने का रस भी विदाहकारक ही होता है। इसलिए गन्ने का रस नही पीना चाहिए।
कई बार देखा गया है की गन्ने का रस पीने के बाद तुरंत गला पकडता है। आवाज बैठ जाता है। सर्दी होती है। टॉन्सिल्स सूज जाते है और बुखार भी आता है। इसका कारण आजकल गन्ने के रस मे नींबू और बर्फ भी डाला जाता है। गन्ने के रस मे स्वाद बढाने के लिए जो इन द्रव्यों का संयोजन किया जाता है, वह उसका रोगकर्तृत्व ही बढाता है। मतलब जिस चीज को हम 'हेल्दी' समझ कर पीते है, वही रोगनिर्माण करने मे आगे रहता है।
गन्ने के रस मे जो निम्बु डाले जाते है, वो भी कई दिनों के, जो खराब होने की कगार पे है, ऐसे होते है। गन्ने के साथ कुचले जाने की वजह से निम्बु की गुणवत्ता को हम जाँच-परख भी नही सकते। बर्फ का भी यही हाल है। बीच मे तो समाचार माध्यमोंद्वारा यह भी खबर फैलाई गयी थी की गन्ने के रस मे जो बर्फ डाला जाता है, वह शवागारों मे शवों को संरक्षित करने के लिए उपयोग मे लिया जानेवाला बर्फ होता है, जो इन रस के ठेलेवालों को सस्ते मे मिलता है। इसलिए आपने एक बात का तो निरीक्षण जरूर किया होगा, वो यह की गन्ने के रस मे घर के फ्रीज का बर्फ डालकर पीने से उपरोक्त बीमारियाँ होने की संभावना नहीवत रहती है।
गन्ने मे भी कई बार बैक्टीरियल और फंगल विकृतियाँ पायी जाती है। रस के लिए जिन गन्नों का उपयोग ठेलेवाले करते है, अगर उनमे इनमे से कोई विकृती होगी, तो इसका कितना बड़ा खामियाजा उस रस पीनेवाले को भुगतना पड़ेगा, क्या इसका अंदाजा आप लगा सकते हो?
गन्ने काँटने के बाद किस तरह से रखे जाते है, यह भारत के सभी लोग जानते है। अगर इन गन्नों पर संक्रमित चूँहो के अथवा कुत्तों के मूत्र का अपसर्पण हुआ हो, तो ऐसे गन्ने का रस पीनेवाले को लेप्टोस्पारोसिस होने की संभावना बहोत ज्यादा रहती है।
गन्ने पर किटकनाशक के रूप मे आजकल कार्बोफुरन (Carbofuran) नाम के केमिकल का बहोत ज्यादा उपयोग किया जाता है। यह कार्बोफुरन मनुष्य के शरीर मे स्थित जैविक घडी ( Biological Clock) की कार्यप्रणाली में गडबड उत्पन्न कर देता है। इस केमिकल की वजह से ही मनुष्य मे मधुमेह (Diabetes) होने की अधिकतम संभावना रहती है।
उपरोक्त आयुर्वेदीक, आधुनिक एवं व्यवहारिक विचारविमर्श के बाद यही प्रतिपादित किया जा सकता है की गन्ने का रस पीना स्वास्थ्य के लिए कतई कल्याणकारी नही हो सकता। अतःएव नही पीना ही उचित है।
हाँ, आयुर्वेद गन्ना चूँसकर खाने का पुरस्कार करता है। गन्ना चूँसकर खाना ही इसके सेवन की उचित पद्धति है। पीलिया (Jaundice) मे गन्ना हितकर होता है। यह यकृत की सूजन मे लाभदायी होता है। यह जानकर सभी लोग पीलिया मे गन्ने का रस पीते है। परंतु यंत्र से निकाला हुआ गन्ने का रस विदाहकारी होने से पीलिया को कम करने की बजाए स्त्यान कफ को उत्पन्न कर के तथा पित्त को दूषित करके पीलिया को और बढा देता है। इसलिए पीलिया मे गन्ना चूँसकर खाना ही हितकर होता है, न कि उसका यंत्रनिष्पीडित रस।
अस्तु। शुभम भवतु।
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