सद्योविरेचनम
सद्योविरेचनम अर्थात मृदु संशोधन। यह शरीर शोधन (Body Purification) की एक प्रक्रिया है। यह मुख्य पंचकर्मों मे से नही परंतु इसे उप पंचकर्म (Para Panchakarma Procedure) जरूर कहा जा सकता है। व्यस्त कार्यशैली के कारण आजकल सबको शास्रोक्त पद्धती से विरेचन करना संभव नही होता। ऐसी स्थिती मे सद्योविरेचनम प्रक्रिया को अवश्य अपनाया जा सकता है।
सद्योविरेचनम रविवार या अन्य छुट्टी के दिन अर्थात जब आप पूर्ण समय कार्यमुक्त (free) हो तभी करना चाहिये। यह प्रक्रिया जब भी करनी हो, उसके पहले दिन शाम को या तो भोजन नही करना चाहिये या तो शाम को 7 बजे के पहले हलका आहार ले लेना चाहिये। (हल्का आहार जैसे दालभात, खिचड़ी नही। कई लोग खिचड़ी को हल्का आहार में लेते है परन्तु खिचड़ी पचने में भारी होती है यह ध्यान रखे।) फिर उसी रात 4 बजे सिद्ध एरण्ड तैल पीना होता है। उसके लिए 1 कप गरम पानी/गरम दूध/त्रिफला क्वाथ (वैद्यराज की सलाहनुसार कोई अन्य प्रवाही द्रव्य भी लिया जा सकता है) चिनी मिट्टी के बर्तन (Mug) मे लेके उसमे शरीर के वजन के हिसाब से सिद्ध एरण्ड तैल मिश्रीत करना चाहिए। गरम पानी/गरम दूध के साथ सिद्ध एरण्ड तैल मिश्रीत करने से एरण्ड तैल अपने आप गरम होता है और उसे अलग से गरम करने की जरुरत नही पडती। पश्चात यह मिश्रण जब पीने जैसा कुनकुना गरम हो जाये तब एक-दो घूँट मे ही पी लेना चाहिए। पीने के लिए चीनी मिट्टी की तश्तरी का उपयोग किया जा सकता है। पीते वक्त सिद्ध एरण्ड तैल की खराब गंध आये तो एक हाथ से नाक बंद करके एक-दो बडे घूँट मे ही पी लेना चाहिए। इसके तुरंत बाद नैपकिन से मुँह पोछकर सौंफ/शक्कर/लौंग या इलायची खाई जा सकती है। इसके बाद डकार आये तब तक घर मे ही चक्कर लगाने चाहिए। डकार आने के बाद गरम कम्बल ओढ़के बायीं करवट पर सो जाना चाहिए और संभव हो तो, पंखा भी नही चलना चाहिए। ए.सी. तो दूर की बात है।
सिद्ध एरण्ड तैल पीने के 1-1½ घण्टे बाद बहोत लोगों को पेडू (lower abdomen or pelvis) मे तीव्रवेदना हो सकती है, पर इसमे डरने की कोई जरुरत नही है। एक दो बार शौच होने के बाद यह दर्द अपने आप मिट जायेगा। अधिकतर लोगों को ऐसा दर्द होता भी नही है। इसलिये यह कोई चिंता का विषय नही है।
सिद्ध एरण्ड तैल पीने के 2-2½ - 3 घण्टे बाद जुलाब शुरू हो जाते है और शुरू होने के बाद 3-3½ घण्टे तक चालू रहते है। इस दरम्यान अगर पानी पीना है, तो गरम पानी ही पीना चाहिये। गरम करके ठण्डा किया हुआ नही चलेगा। जुलाब शुरू होने के बाद बंद होने तक कुछ भी नही खाना चाहिये, भले कितनी ही ज्यादा भूख क्यों न लगे। प्यास लगे तो गरम पानी पीना चाहिये। जुलाब बंद होने के बाद ही गरम पानी से नहाना चाहिए। स्नान के बाद ताजा बनाया हुआ गरमागरम ढीला भात मुंग की सादी पतली दाल खानी चाहिए। जुलाब बंद होने के बाद अगले 24 घण्टे तक उपरोक्त दाल भात ही खाना चाहिए। दाल भात भरपेट खाया जा सकता है। 24 घण्टे बाद सामान्य आहार शुरू किया जा सकता है। जिनका पाचनतंत्र दुर्बल है, उन्हें 48 घंटो के बाद ही सामान्य आहार शुरू करना चाहिए, अन्यथा पेट मे हल्का हल्का दर्द होने की संभावना रहती है। जब तक सामान्य आहार शुरू नही करते, तब तक पानी भी गर्म ही पीना चाहिए। 24 या 48 घंटो के बाद लेनेवाला जो सामान्य आहार है, उसमे भी बने तब तक पचने में भारी आहारपदार्थो का समावेश नही करना चाहिए। इस काल मे तला हुआ और फलों का सेवन नही करना चाहिये।
सद्योविरेचनम के दिन कोई भी औषधी नही लेनी चाहिए। फिर चाहे हृदयरोग की दवा हो, बीपी की हो या मधुमेह की। अगर कोई औषधी चालू करना हो तो सद्योविरेचनम पूरा होने के 24 घण्टे के बाद ही शुरू करे।
व्याधी की तीव्रता, रोगी का बल, प्रकृति एवं वर्तमान ऋतु के अनुसार सद्योविरेचनम की वारंवारता एवं सिद्ध एरण्ड तैल की मात्रा (Dose) निश्चित करना चाहिये। सद्योविरेचनम की प्रक्रिया हर 7/15/30/60 दिन मे एक बार आवश्यकतानुसार दोहराई जा सकती है।
वस्तुरूप में अगर देखा जाए तो सद्योविरेचन यह निरोगी रहने की कुंजी है। स्वस्थ व्यक्ति को अगर अपना स्वास्थ्य बनाये रखना है, तो महीने में कमसे कम एक बार तो सद्योविरेचन करना ही चाहिए। जैसे निर्जीव गाड़ी को भी सर्विसिंग की आवश्यकता होती है वैसे ही अपने शरीर को भी सर्विसिंग की आवश्यकता होती ही है। सद्योविरेचन लेकर पेट साफ करवाना यह उसी शुद्धिकरण प्रक्रिया का एक हिस्सा ही है।
विशेष निर्देश :
1) उपरोक्त वर्णन मे जो समय निर्देश किया गया है, वह एक साधारण निर्देश है। काल एवं व्यक्ति परत्त्वे इसमे बदलाव हो सकते है। यह ध्यान रखे।
2) सद्योविरेचनम में किसी व्यक्ति को 5 बार तो किसी को 10-15 बार शौच हो सकते है। व्यक्ति के कोठे (कोष्ठ) की प्रकृति पर शौच वेग संख्या निर्भर करती है।
3) जुलाब होने के बाद गर्मी के दिन हो तो भी नहाने के लिए गरम पानी ही लेना चाहिए। ऋतु के अनुसार पानी की गरमाई मे कम ज्यादा फर्क किया जा सकता है।
4) सद्योविरेचनम के दिन शरीर मे थोड़ी दुर्बलता आती है। इसलिये पूर्ण दिन विश्राम आवश्यक है। घर बैठे बैठे टेबल वर्क या कंप्यूटर वर्क किया जा सकता है। इस दिन बाहर घूमना वर्ज्य ही करे। कोई वाहन न चलाये।
5) महिलाओं को मासिक धर्म के 4 दिनों में या अन्य किसी कारणवश मासिक धर्म चालू हो तो उस समय के दरम्यान इसे नही करना चाहिए। गर्भिणी माताओं में भी इसका निषेध है।
6) सद्योविरेचनम के दिन तथा उसके पश्चात 5 दिन तक मैथुन वर्जित करना चाहिए।
7) सद्योविरेचनम के दिन चाय वर्ज्य ही करना चाहिए। दूसरे दिन से शुरू करना हो तो कर सकते है।
8) मुंग की सादी पतली दाल - इसे मराठी मे 'वरण' भी कहते है। 'वरण' शब्द से यहाँ निश्चित रुप से क्या अपेक्षित है इसका अंदाजा आपको आ जायेगा। इसे बनाने की विधी (receipe) आपको किसी वेबसाइट से मिल जायेगी।
9) 30 किलो के नीचे जिनका वजन है, वो आयुर्वेदिक डॉक्टर की देखभाल मे ही यह प्रयोग करे।
10) हलका आहार जैसे दाल-भात (खिचड़ी नही) सिर्फ उपमा, जुवार की रोटी और दाल, भगर (Barnyard millet) का सेवन करना चाहिए।
11) सद्योविरेचन के बाद किसी को दूसरे दिन संडास नही होती, तो किसी अगले 2 दिन भी नही होती। पूर्ण पेट साफ होने की वजह से ऐसा होता है। इसलिये अकारण चिंता न करे एवम कोई पेट साफ करने को औषधि न ले।
12) सिद्ध एरंड तैलम की मात्रा - वजन अगर 60 या 60 से कम होगा तो शरीर का वजन × 0.5 ml इस फॉर्मूले का उपयोग करे और वजन अगर 60 किलो से ज्यादा है शरीर का वजन × 0.6 ml इस फॉर्मूले का उपयोग करके सिद्ध एरंड तैलम की मात्रा का विनिश्चय किया जा सकता है। वजन उचित होने के बाद भी अगर किसी कारणवश किसी व्यक्ति को दुर्बलता (weakness) ज्यादा है तो ऐसे व्यक्ति को आयुर्वेदिक डॉक्टर के देखरेख में ही यह प्रयोग करना चाहिए।
स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैल यह सामान्य एरंड तैल की अपेक्षा स्वाद में कई गुना बेहतर होता है। फिर भी अगर इसे पीने में असहजता का अनुभव हो तो निम्नलिखित विधि का उपयोग करके सिद्ध एरंड तैल का स्वाद अनुकूल बनाया जा सकता है।
चिकित्सक के निर्देशानुसार जितना सिद्ध एरंड तैल पीना हो, उतनी मात्रा में उसे एक स्टील के बर्तन में निकालो। फिर उस बर्तन को धीमी आंच पर गरम करो। परिणामस्वरूप उसमे रखा हुआ एरंड तैल भी गरम हो जाएगा। अब तैल जैसे ही गरम हो जाये, उसे नीचे उतार कर उस मे एक या दो इलायची पाउडर करके मिश्रित करे और अच्छी तरह से हिलाए और एक तरफ सुरक्षित रखे। जब इसका सेवन करना हो तब उपरोक्त विधी से सेवन करे। ध्यान रहे, इलायची डालकर इस प्रकार सुगंधित किये हुए एरंड तैल का भी गंध और स्वाद कुछ ही दिनों में पूर्ववत हो जाते है। इसलिये जिस दिन एरंड तैल का सेवन करना हो, उसके अगले दिन ही यह प्रयोग करे।
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