दिनचर्या भाग 13 - सायंभोजनम (Dinner)
कुछ मुद्दे एकदम सामान्य होने की वजह से आयुर्वेद के आचार्यो ने दिनचर्या वर्णन करते वक्त उन मुद्दों का वर्णन नही किया। क्योंकि ये मुद्दे, जो आज हमारे लिए अहम है, वो उस काल मे अतिसामान्य थे। एक अनपढ व्यक्ति भी परंपरागत तरीके से उन मुद्दों के बारे मे जानकारी रखता था और इसलिए ही आचार्यो ने उन मुद्दों को लिपिबद्ध करने की बजाए मौखिक रूप से जिवंत रखा। शायद यही एक कारण था की माध्यान्हभोजनम एवं सायंभोजनम जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण होकर भी दिनचर्या के अंतर्गत शास्र मे वर्णित नही है। परंतु इसका अर्थ यह नही की उनका कोई महत्व नही।
सायंभोजन अर्थात सायंकाल को लिया जानेवाला भोजन। परंतु अब सायंकाल मतलब कब? तो आयुर्वेद कहता है भोजन सेवन के परिप्रेक्ष्य में इस काल का अर्थ सूर्यास्त के पहले होता है। मतलब अर्थ एकदम स्पष्ट है की सायंकाल का भोजन सूर्यास्त के पूर्व ही लेना चाहिए। परंतु आजकल नौकरी अथवा व्यवसाय के कारण व्यस्तता इतनी बढ गई है की शाम का खाना सूर्यास्त के पहले अर्थात 6 या 6.30 बजे के पहले लेना संभव ही नही। जिन के लिए शाम का खाना सूर्यास्त के पूर्व लेना आसान है, वो इस सुवर्णसंधी का निश्चित लाभ ले। क्योंकि सूर्य की उपस्थिती मे लिया गए भोजन का सम्यक रूप से पाचन होता है।
आयुर्वेद के अनुसार सूर्यास्त के बाद सभी शरीर क्रियाये धीमी हो जाती है। जीवन संतति बनाए रखने के लिए जिन क्रियाओं की आवश्यकता है, वही क्रियाए पूर्णरूप से चालू होती है, बाकी सभी क्रियाये मंद हो जाती है। यही नियम पाचनसंस्थान के लिए भी लागू पड़ता है। सूर्यास्त के बाद पाचन भी मंद हो जाता है। इसलिए ग्रहण किया हुआ अन्न का पाचन होने मे जरूरत से ज्यादा समय लगता है। सामान्यतः आहार ग्रहण करने के बाद उसका पूरा पाचन होने के लिए कम से कम 3 घण्टे का समय लगता है। परंतु यह नियम सूर्य की उपस्थिती मे होनेवाले पाचन के लिए लागू है। सूर्यास्त के बाद पाचनसंस्थान की धीमी गति इस समय को और बढा देती है। मतलब जो पाचन दिन मे 3 घण्टे मे होता है, वही प्रक्रिया सूर्यास्त के बाद पूरी होने मे 3 घण्टे से ज्यादा का समय लगता है। सुबह से शाम तक काम करने के बाद थका हुआ व्यक्ति घर आने के बाद खाना खाता है। और थका हुआ होने के कारण खाने के बाद 1 या 2 घण्टे के बाद सो जाता है। मतलब पहले ही खाना सूर्यास्त के बाद खाया, उसमे भी उसका पूरा पचन होने के पहले ही सो गये। ऐसी स्थिती मे पूरा खाना अधपचे अवस्था मे पेट मे पडा रहता है। यही अर्धपक्व/अपक्व अन्न अजीर्ण, अम्लपित्त, अतिसार, ग्रहणी, कब्ज जैसे व्याधियों का कारण बनता है। इसलिए सायंकाल का भोजन सूर्यास्त के पहले ही लेना चाहिए। परंतु उपर कहे अनुसार आज की दौडधाम की जिंदगी मे यह संभव ही नही। ऐसे वक्त शाम का खाना ज्यादा से ज्यादा 7 बजे तक खा लेना चाहिए। शाम को हो सके तो थोडा कम ही खाना चाहिए। क्योंकि पहले ही पाचन प्रक्रिया मे मंदता आयी हुई रहती है और उपर से ज्यादा खा लिया, तो उस अन्न का पाचन करने मे पाचनसंस्थान को बहोत ही दिक्कतों का सामना करना पडता है। अतःएव संभव हो तब तक शाम का खाना सूर्यास्त के पहले ही खाये। परंतु कुछ अभागी लोग होते है, जिनको इस नियम का पालन करना संभव नही होता, ऐसे लोगो को भोजन ग्रहण करने के सभी नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए। भोजन के 2 घण्टे बाद पिये जानेवाला पानी संभव हो तो गरम ही पिये। पूरे साल में ऋतु अनुसार पंचकर्म करवाके शरीर शोधन करे। ताकि इस तरह से दिनचर्या में होनेवाले प्रमादो का कुछ हद तक निराकरण किया जा सके।
सायंकाल के कुछ अन्य नियम -
1. रात्रीकाल स्वभावतः कफवर्धक होता है। इसलिए सायंभोजन मे कफवर्धक तथा अभिष्यंद उत्पन्न करनेवाले दही, खट्टी कढ़ी, केला, छाछ, सीताफल, श्रीखंड, लस्सी, मिल्क शेक, फ्रूट सलाड जैसे खाद्यपदार्थों का सेवन नही करना चाहिए।
2. तला हुआ खाना गरिष्ठ होता है। जल्दी पचता नही। इसलिए गरिष्ठ आहार पदार्थों का सायंभोजन मे समावेश नही करना चाहिए।
3. संभव हो तब तक शाम को गेहूँ की रोटी की जगह जुवार की रोटी का उपयोग करना चाहिए। जो की रोटी का उपयोग तो सर्वकाल स्वीकृत है ही।
4. पिज्जा, भेल जैसे क्लिन्न (जिनके तार टूटते हो) खाद्यवस्तुओं का सेवन न करे।
5. कैथ (Wood apple) का सूर्यास्त के बाद कभी भी सेवन न करे।
6. शाम के खाने को किसी भी प्रकार का अचार नही होना चाहिए।
अस्तु। शुभम भवतु।
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