आजकल पानी पीना ये जरुरत कम और फैशन ज्यादा हो गया है। अर्थात लोग शरीर के लिये जितना आवश्यक है, उससे ज्यादा पानी पीते है।
क्यू?
क्यू की सुना है, ज्यादा पानी पीने से....
1) त्वचा हिरोईन जैसी कोमल रहती है।
2) पथरी नही होती।
3) पेट साफ होता है।
4) आलस्य जाकर शरीर में स्फूर्ती आती है।
पर वास्तविकता यह है की उपरोक्त सभी फायदे सिर्फ संतुलित मात्रा में ही पानी पीने से मिलते है, न की ज्यादा मात्रा में। सामान्य जनों में पिछले कई वर्षों से इसी विषय से सम्बंधित एक प्रवृत्ति देखी जा रही है जिसे उषःपान (Hydrotherapy) के नाम से जाना जाता है और आयुर्वेद के नाम से खपाया जा रहा है। परंतु सत्य यह है की आयुर्वेद में ऐसा उषःपान कही भी बताया नही है।
तो फिर ये उषःपान (Hydrotherapy) क्या है?
सम्प्रति जिसे आयुर्वेदिक उषःपान का नाम देकर प्रचारित किया जा रहा है वह वस्तुरूप में नेचुरोपैथी चिकित्सापद्धति का एक चिकित्सा अंग है, आयुर्वेद का नही। तथाकथित उषःपान करनेवाले लोग सुबह सुबह नींद से उठते ही बिना मंजन किये 1 से 4 लीटर तक ठंडा पानी पीते है, जिससे उनका पेट साफ़ होता है। यथार्थ रूप में कचरे से भरी नाली को बहोत पानी डालकर साफ़ करने जैसी इस संकल्पना का आयुर्वेद यत्किंचित भी समर्थन नही करता। ऐसा करते रहने से कुछ महीनों बाद पाचकाग्नि धीरे धीरे मंद होता जाता है। यही मंद पाचकाग्नि पेट में अभिष्यंद उत्पन्न करता है, जो आगे चलकर विविध व्याधियों के अनेक कारणों में से एक कारण बनता है।
उषःपान के रूप में कई सारे लोग सुबह सुबह निम्बुपानी, निम्बू अदरक का काढ़ा, लौकी का रस, ग्वारपाठे का रस, करेले का रस, बीट का रस, नीम का रस, गेहूँ के अंकुरों का रस ऐसे तरह तरह के पेय पदार्थो का आयुर्वेद के नाम से सेवन करते है, पर तथ्य यह है की इनका कोई आयुर्वेदिक आधार ही नही है। मनुष्य सदैव स्वस्थ एवं दीर्घायु रहे इस हेतु से आचार्यों ने दिनचर्या तथा ऋतुचर्या का वर्णन किया है, पर उसमे भी कही भी इस तरह के पेय पदार्थों के प्रातःकालीन सेवन की बात नही आयी है।
आयुर्वेद में स्पष्ट तौर पर उषःपान का कही भी उल्लेख नही है। फिर भी चल सन्दर्भ (Running Reference) के रूप में आचार्यों ने एक जगह अपने विचार स्पष्ट किये है। आयुर्वेद में प्रातःकालीन निरन्न जलपान को वयस्थापन कहा है। वयस्थापन अर्थात जो वार्धक्य को रोके, जो युवावस्था को स्थिर रखकर शरीर को निरोग रखता हुआ आयु को अकाल नष्ट होने से बचाये। परंतु यह प्रातःकालीन निरन्न जलपान की मात्रा उतनी ही होनी चाहिए जितनी एक व्यक्तिविशेष के लिए आवश्यक हो। जोर जबरदस्ती से पानी से भरा पूरा लोटा पेट में डालने से इन गुणकर्मोंकी उपलब्धि नही होती अपितु ऊपर वर्णित विविध व्याधियों की उत्पत्ति का कारण ही बनती है।
कई लोग कब्ज से पीड़ित होते है, अतः सुबह सुबह 1 से 4 लीटर जितना ठंडा पानी पीते है, पर अगर वो लोग सिर्फ एक ही ग्लास गरम पानी पीना शुरू करे तो (कोई अन्य व्याधी ना हो तो) उनकी समस्या का निराकरण कुछ ही दिनों में हो सकता है। इसीलिए सुनी सुनायी बातों पे विश्वास करने से अच्छा है किसी तज्ञ आयुर्वेद डॉक्टर की सलाह लेकर ही आयुर्वेदीय दिनचर्या का पालन करना चाहिये।
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