वृद्धत्व और औषधियों के परिणाम
वृद्धत्व अर्थात बूढापन। पृथ्वी पर सभी सजीवों में वृद्धावस्था पाई जाती है। वृद्धावस्था का अर्थ है जीवन अस्त की ओर चलायमान होना। इस पृथ्वी पर कोई भी अमर होने के लिए नही आया यह शाश्वत सत्य सभी को पता है। इसलिये वृद्धावस्था आई मतलब जीवन का सूर्यास्त नजदीक होता है। इस जीवनसंतति को जब समेटना होता है तो ईश्वर उस प्रक्रिया के लिए कुछ न कुछ कारण ढूंढता रहता है। आजकल गलत जीवनशैली ने ईश्वर को ऐसे हजारों कारण सुलभता से उपलब्ध करा दिए है, जिनको आधार बनाकर ईश्वर उस वृद्ध व्यक्ति के जीवन के अंतिम चरण का संचालन करता है। इसलिये आज समाज मे हम देखते है कि 95% वृद्ध व्यक्तियों को डायबिटीज अथवा ब्लड प्रेशर जैसा कोई न कोई व्याधि होता ही है। यह व्याधि या तो पहले से चले आ रहे व्याधियों का उपद्रव होता है या फिर वयसुलभ कोई नया ही व्याधि होता है जैसे पार्किन्सन, अल्जाइमर अथवा प्रोस्टेट।
अब जैसे ही कोई व्याधि वृद्धावस्था में उत्पन्न होता है तो प्रत्येक व्यक्ति प्रथम एलोपैथी औषधियां लेकर स्वस्थ होना चाहता है। परंतु जब उन्हें एलोपैथी की औषधियों की मर्यादाओं का भान होता है तब वे आयुर्वेद की ओर अपना लक्ष्य केंद्रित करते है। परंतु आयुर्वेद में आकर उन्हें शीघ्र परिणाम चाहिए होते है कि जो प्राचीन काल से लेकर आजतक कभी संभव नही हो पाया है। इसका कारण है वृद्धावस्था में शरीर के अंतर्गत अवयवों में होनेवाले बदलाव। वृद्धावस्था में कोई भी आहारद्रव्य हो या औषधि - इनका सेवन करने के बाद उचित मात्रा में शोषण नही होता। जैसे, कोई एक औषधि अगर शिशु को दी जाय तो उसे वह औषधी जल्दी लागू पड़ती है, पर वही औषधि अगर किसी वृद्ध व्यक्ति को दी जाये तो उन्हें जल्दी फायदा होता ही नही। इसका कारण है - उस औषधि का उस वृध्द व्यक्ति के शरीर मे विलंब से होनेवाला पाचन एवं शोषण। इसलिये उम्र के इस पड़ाव में अगर कोई साधारण व्याधि होती भी है तो वह जल्दी ठीक नही होती या हो सकता है की वह व्यक्ति उस व्याधि के कारण ही मृत्यु को प्राप्त हो जाए। यह बात अगर आज के वृद्ध व्यक्तियों के पता चले, तो निश्चित ही उनका शेष जीवन प्रवास सुखकर होगा। परंतु वर्तमान भारतवर्ष का सबसे बड़ा दुर्दैव यह है कि जिन वृद्धों की जीवनचर्या देखकर युवा पीढ़ी अपना मार्ग तय करती है, वह वृद्ध पीढ़ी आज स्वतः घोर अज्ञान में डूबी हुई है। सामान्यतः ऐसा समझा जाता है कि वृध्दों को आयुर्वेद का प्राथमिक ज्ञान तो होता ही है। परंतु यह धारणा भूतकाल के लिए सच थी। आज के लिए नही। आज की वृद्ध पीढ़ी भी आयुर्वेद के बारे में उतनी ही अज्ञानी है, जितनी कि युवा पीढ़ी।
वर्तमान वयोवृद्धों को सीधी सादी दिनचर्या या ऋतुचर्या का भी ज्ञान नही है। न ही आहार के बारे सामान्य ज्ञान है। युवा पीढ़ी आहार विहार में जो गलतियां करती है, वही गलतियां वृद्ध व्यक्ति भी करते देखे गए है। इस सब घोर अज्ञान का परिणाम यह हुआ कि आज जब भी वृध्दों की चिकित्सा करने का अवसर प्राप्त होता है, तब उन्हें भी आहार विहार की हर बात युवाओं जैसी ही समझानी पड़ती है। हालांकि इसके विपरीत चित्र की अपेक्षा होती है कि वयोवृद्ध व्यक्तियों को परहेज के बारे में ज्यादा समझाने की जरूरत नही होनी चाहिए। क्योंकि उनके पास जीवन का वो अनुभव होता है, जो युवाओं के पास नही होता। पर आयुर्वेद के संबंध में आज यह देखा गया है कि उनके और युवाओं के विचार का स्तर एक ही होता है। दोनो धड़ल्ले से खिचड़ी के साथ दूध खाने जैसा प्रज्ञापराध करते है। यह पढ़कर आप को अतिशयोक्ति लगेगी पर आज भी 1-2% वयोवृद्धों को होमियोपैथी और आयुर्वेद में फर्क पता नही है और यह प्रमाण धीमी गति से बढ़ रहा है।
उपरोक्त मुद्दों को पढ़कर आपको लगेगा कि इसका मतलब वृद्ध व्यक्तियों को आयुर्वेद का विशेषज्ञ होना चाहिए। तो ऐसा भी नही है। विशेषज्ञ होने की कोई आवश्यकता नही है। भारत सरकार इसी काम के लिए आयुर्वेदाचार्य तैयार करती है। पर आयुर्वेद भारतीय धरोहर होने के नाते आयुर्वेद का प्राथमिक ज्ञान होना अत्यावश्यक है। 1960-70 के दशकों तक, अगर त्वचा में कही कटा, घसीटा तो तुरंत वहां पर हल्दी या शहद लगाने की परंपरा थी। यह प्राथमिक ज्ञान है। आज अगर घर मे किसी को ऐसे ही कुछ हुआ तो घर मे उपस्थित वयोवृद्ध तुरंत वहां पर एंटीबायोटिक का क्रीम लगाने की सलाह देते है। मतलब प्राचीन काल के भारतीय वयोवृद्धों को बिना वैद्यकी पढ़े जो आयुर्वेद का प्राथमिक ज्ञान परंपरा से प्राप्त होता था, वह आज लुप्त हो गया है। इसलिये वृद्धावस्था आने के बाद भी कोई औषधि जल्दी काम क्यो नही करती, ऐसा प्रश्न अगर कोई वृद्ध व्यक्ति आपसे करता है तो इसका अर्थ यही है कि जीवन के सामान्य सूत्रों का भी उन्हें ज्ञान नही है।
वृद्धावस्था में शरीर मे कोई भी नया धातु (tissue) तैयार नही होता। सिर्फ जो है उसे संभालने का ही काम चालू रहता है। इसलिये काल के प्रभाव से जैसे जैसे शरीर जीर्णशीर्ण होना शुरू हो जाता है, ऐसी स्थिती अंदर के अवयवों में भी उत्पन्न होती है। वो भी वृद्ध होते जाते है। उनकी भी कार्यक्षमता घट जाती है। इसलिये वृद्धावस्था में सेवन की हुई कोई भी औषधि त्वरित अपना परिणाम नही दिखा सकती। परिणाम आने के लिए दीर्घ समय लग सकता है या हो सकता है कि परिणाम ही न आये। इसलिये वृद्ध लोगो को औषधि सेवन बिना परिणाम की अपेक्षा किये ही सेवन करना चाहिए। हालांकि परिणाम मिलते ही नही, ऐसा तो कभी हुआ ही नही। परिणाम होता ही है पर विलंब से। चिकित्सा लेते वक्त सभी वृद्धों को यह बात ध्यान में रखनी ही चाहिए, अन्यथा मानसिक उद्विग्नता उत्पन्न होने की संभावना ज्यादा रहती है। अस्तु। शुभम भवतु।
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