Vaidya Somraj Kharche, M.D. Ph.D. (Ayu) 24 Aug 2017 Views : 2567
Vaidya Somraj Kharche, M.D. Ph.D. (Ayu)
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आयुर्वेद एवं एलोपैथी - तुलनात्मक चर्चा

Ayurved & Allopathy - A Comparative Discussion

एलोपैथी यह स्वतंत्र भारत की प्रथम राजमान्य चिकित्सापद्धती है। अनेक कारणों से समाज का इस चिकित्सापद्धति पर विश्वास भी है। इसीलिए शरीर मे उत्पन्न होनेवाली प्रत्येक समस्या के समाधान का प्रथम प्रयास लोग एलोपैथी से ही करते है। परंतु एलोपैथी भी जब उनकी स्वास्थ समस्या का समाधान नही कर सकती, तब लोग कोई और विकल्प ढूँढना शुरू कर देते है। पर विकल्प खोजने की प्रक्रिया मे वो सुविधापूर्वक यह भूल जाते है की विकल्प भी एक शास्त्र होता है, वैसे ही विकल्प के रूप मे खोजे जानेवाले शास्त्र के भी अपने स्वतंत्र नियम होते है। सम्प्रति भारतीय नागरिक के पास आयुर्वेद और होमियोपैथी यह दो चिकित्सापद्धतियाँ विकल्प के रूप मे उपलब्ध है। परंतु विकल्प का अर्थ आरंभ से ही विकल्प चुनना होता है। बीच मे से ही नही। शुरुवात से चुनने के बाद ही वैकल्पिक चिकित्सापद्धति अपने सद्गुणों का पूर्णरूप से प्रदर्शन कर सकती है। नही तो अन्य चिकित्सापद्धति पर अविश्वास के कारण, पहले एलोपैथी अपनाना और फिर जब एलोपैथी अपने घुँटने टेक दे, तब आयुर्वेद अपनाने से कोई विशेष फायदा नही होता। अगर आप गलती से रास्ता भूल गये, तो तुरंत आपको वैकल्पिक रास्ता नही मिलता। बल्कि जहाँ से आप रास्ता भटक गये हो, वही जाकर नये सिरे से यात्रा शुरू करनी करनी पड़ती है। इसीलिए ध्यान रहे, चिकित्सा के बीच मे ही विकल्प ढूँढना उचित नही। विकल्प को भी आरंभ से ही तय करना होता है।

एलोपैथी की असमर्थता के बाद हारी हुई स्थिती मे जब लोग आयुर्वेद के पास आते है, तब उनकी ऐसी अपेक्षा रहती है की आयुर्वेद अब जादुई छड़ी घुमाने जैसा एक रात मे रोग ठीक कर दे। परंतु ऐसा चमत्कार कभी होता नहीं। संतोषजनक परिणाम प्राप्त करने के लिए एक निश्चित समय तो आपको देना ही होगा। कभी कभी तो ऐसा होता है की कोई अत्यंत सुखसाध्य व्याधी है और सबसे पहले चिकित्सा के लिए यदि एलोपैथी को वरीयता दी जाए, तो एलोपैथी उस सुखसाध्य व्याधी को और कष्टसाध्यता या असाध्यता की ओर ले जाती है। मतलब जिस व्याधी को आयुर्वेद कुछ दिनों मे ही ठीक कर सकता था, एलोपैथी उस व्याधी को इस हद तक पेचीदा (complicate) करके रख देती है की बाद मे रुग्ण विवश होकर आयुर्वेद की शरण मे आये, तो भी आयुर्वेद उसे निर्धारित अवधि मे संतोषप्रद परिणाम नही दे सकता। स्टिरॉइड, मिथोट्रिक्सेट का सेवन करनेवाले आमवात के रोगी, मीसाकोल का एनिमा लेने वाले ulcerative colits के रोगी, अन्य सभी वातव्यधियों के रोगी, यकृत की व्याधियाँ जैसे पीलीया, पाचन संस्थान की व्याधियाँ ये कुछ इसके उत्तम उदाहरण है। ये व्याधियाँ आयुर्वेद पूर्णरूप से ठीक कर सकता है - वो भी कुछ ही महीनों मे और अल्प व्यय मे। परंतु इन व्याधियों मे अगर आरंभ से ही एलोपैथी चिकित्सा ली जाए, तो ये व्याधियाँ ठीक तो होती नही, ऊपर से और पेचीदा हो जाती है।

उदावर्त (Chronic & severe constipation induced syndrome) तो ऐसा व्याधी है की जो आयुर्वेद से पूर्णरूप से ठीक हो जाता है। परंतु अगर उदावर्त मे एलोपैथी का सहारा लिया जाये, तो रुग्ण ठीक तो होता ही नही, अपितु दिन प्रतिदिन बिगडता जाता है और अंत मे रुग्ण मे मनोविकार उत्पन्न हो जाते है। आयुर्वेद उदावर्त या तत्सम अन्य व्याधियों को बडी ही सहजता एवं सरलता से ठीक कर देता है। वही जिन व्याधियों मे इंफेक्शन (infection) कारण होता है, वहाँ एलोपैथी अच्छा काम करती है। हालॉकि आजकल कई बार यह भी देखा गया है की कई सारे अँटीबायोटिक्स लेने के बाद भी रुग्ण ठीक नही होता। एक के बाद एक ऐसे कितने ही अँटीबायोटिक्स बदलने पडते है। फिर भी कुछ दिनों तक ही अच्छा रहता है, बाद मे जैसे थे स्थिति। ऐसी अवस्था मे दोनो चिकित्सापद्धतियों का समन्वय उत्कृष्ट कार्य करता है। सभी प्रकार के कैंसर भी - ना अकेले एलोपैथी से ठीक होते है ना ही आयुर्वेद से परंतु दोनों चिकित्सापद्धतियों का समन्वय ' न भूतो न भविष्यति' ऐसा कार्य करता है।

शल्यकर्म (surgery) के क्षेत्र मे आयुर्वेद का इतिहास भले ही सुनहरा रहा हो। परंतु वर्तमान परिस्थिती मे तो शल्यकर्म एलोपैथी का ही अच्छा है। इसीलिए आयुर्वेद हो या एलोपैथी दोनो शास्त्र अपनी अपनी जगह श्रेष्ठ है। दोनो एक दूसरे के विकल्प है। परंतु इन विकल्पों को आरंभ से ही चुनना चाहिए। बीच मे से ही नही। दोनो का समन्वय ( integration) कुछ गिने चुने व्याधियों मे ही वांछनीय है। प्रत्येक चिकित्सापद्धति के चिकित्सा-कौशल्य का एक विशिष्ट क्षेत्राधिकार रहता है, उस क्षेत्र मे आने वाले व्याधियों के लिए तत्-तत् चिकित्सापद्धति को ही प्राधान्य देना उचित रहता है।

 

अस्तु। शुभम भवतु।