दिनचर्या भाग 7 - स्नान (Bathing)
दिनचर्या मे क्रमानुसार व्यायाम के बाद स्नान करना अपेक्षित होता है। परंतु व्यायाम के तुरंत बाद स्नान नही किया जाता यह ध्यान रहे। 45 मिनीट तक आराम करने के बाद ही स्नान करना चाहिए। इस 45 मिनीट मे समाचार पत्र पढना, सोशल मीडिया की सैर करना, पूरे दिन के कामों का प्लानिंग करना ऐसे काम बैठे बैठे किये जा सकते है। इन प्रवृत्तिओं के दरम्यान कुछ खाना पीना नही चाहिए। फिर व्यायाम के उपरांत जब शरीर का तापमान सामान्य हो जाये तभी स्नान करना चाहिए। यह एक सामान्य क्रम है। परंतु जिनके पास समय की कमी है ऐसे लोग 45 मिनीट की जगह 25-30 मिनीट के बाद स्नान करे तो भी चलेगा। परंतु ध्यान रहे यह सिर्फ एक समायोजन (Adjustment) है, नियम नही। इसे बार बार न दोहराये।स्नान यह एक दैनिक कर्म है और सभी वाचक स्नान प्रक्रिया से भलीभाँति परिचीत है। इसलिए स्नान का ज्यादा विवेचन करना आवश्यक नही। फिर भी आयुर्वेद मे कुछ विचार विर्मश स्नान के बारे मे किया है, जो सामान्य होने के बावजूद भी महत्वपूर्ण है।
स्नान प्रातःकाल शौचमुखमार्जनदि प्रक्रियाओं से निवृत्त होने के बाद ही करना चाहिए। स्नान के गुणों का वर्णन करते हुए आयुर्वेद कहता है की स्नान करने से भूख लगती है। स्नान रतिक्रिया की इच्छा बढाता है। स्नान ओजवर्धन तथा आयुष्यकर है। नियमित स्नान से बल बढता है। स्नान से शरीर मे किसी कारणवश खुजली हो रही हो, तो वो कम होती है। शरीर पर स्थित मल दूर होता है। थकावट दूर होती है और यह हमारा रोज का अनुभव भी है कि प्रवास से थके - हारे घर आने के बाद, हम जैसे ही नहाते है, तो पूरी थकान कहा गायब हो जाती है, पता ही नही चलता। पसीने की दुर्गंध निकल जाती है। गर्मी की वजह से शरीर मे जलन हो रही हो, तो वो भी कम हो जाती है। इसलिए स्नान नियमित रूप से करना ही चाहिए।
स्नान सदैव सुखोष्ण जल से ही करना चाहिए। सुखोष्ण अर्थात जिसका तापमान शरीर को सुखानुभूति प्रदान करे। कुछ लोगों को पानी इतना गर्म चाहिए की जैसे उन्हे नहाने की बजाये हड्डियाँ ही सेकना हो। इतने गरम पानी से नहाना नही चाहिए। गरम पानी से नहाने वक्त एक विशेष बात का ध्यान रखना चाहिए की सिर पर से गर्म पानी नहीं लेना चाहिए। सिर से गर्म पानी लेकर स्नान करने से आँखो तथा बालों को हानी पहुँचती है। नेत्रज्योति (Vision) कम होती है और बाल झडना (Hair Fall) शुरू हो जाता है। परन्तु यह हानी कोई एक दिन मे नही होती, कुछ महीनो के पश्चात ही ये दुष्परिणाम नजर आते है। इसलिए गर्म पानी सिर से लेके नहाना नही चाहिए। फिर भी कुछ व्याधियाँ इसके लिए अपवाद स्वरूप है। जैसे जिन्हे छींक आती है, जिन्हे सतत सर्दी बनी रहती है ऐसे लोग दो-चार दिन तक, जब तक तकलीफ कम नही होती, तब तक सिर से सहन हो इतना गर्म पानी ले सकते है। तद्वत एकदम ठण्डा पानी भी सिर पर नही लेना चाहिए। क्योंकि पानी अगर थोडा भी ज्यादा ठण्डा हो तो सिरदर्द होने की संभावना रहती है। इसीलिए पानी को इतना गर्म करो कि वो ठण्डा भी न रहे और गर्म भी नही।
स्नान करते वक्त आजकल 90% लोग साबुन का उपयोग करते है, जो पूर्णतः हानीकर है। इसलिए कुछ सज्जन आयुर्वेदीक साबु का उपयोग करते है, परंतु सत्य तो यह है की कोई भी साबुन आयुर्वेदीक नही होता। बिना 'डिटरजेंट बेस' के साबुन बनता ही नही। आयुर्वेदीय विचारधारा के अनुसार साबुन तीव्र विशद तथा रुक्ष गुण प्रधान होता है, जो त्वचा को स्वच्छ तो बनाता है, पर त्वचा की स्निग्धता तथा कोमलता की किमत चुकाकर। इससे शनैः शनैः त्वचा का व्याधिक्षमत्व कम होता है और यही कारण है की आजकल की पीढी मे त्वचा से संबंधित विकारों मे अथाह वृद्धि हुई है। वायुमण्डल मे अल्प परिवर्तन भी त्वचा पर विपरीत परिणाम करता है। दाद जैसे क्षुद्र रोग, की जो चिकित्सा से त्वरित ठीक हो जाया करते थे, आजकल सालोसाल ठीक नही होते। सोरियासिस की तो जैसे फसल ही उगी है, इतनी मात्रा मे ये व्याधि फैला है। इसलिए स्नान करते वक्त 'स्वामीआयुर्वेद निर्मल स्नान' अथवा तत्सम अंगराग पावडर का शरीर प्रक्षालन के लिए उपयोग करना चाहिए। स्नान पूर्ण होने के बाद सूती तौलिये से शरीर को रगड़ रगड़ कर पोछना चाहिए जिससे शरीरपर जरा भी गीलापन न रहे। अभ्यंग करने के बाद किये गए स्नान में इस बात का विशेष ध्यान रखना जरुरी है क्योकि यह गीलापन ही बाद में फंगल इन्फेक्शन को आमंत्रण देता है। इसलिए शरीर को पोछकर साफ़ करना जरुरी है। बग़ल, कान के पीछे का हिस्सा, जाँघो का विशेष ख्याल रखे।
स्नान का निषेध :
प्रतिदिन स्नान करना ही आयुर्वेद मे हितकर बताया है। परंतु कुछ व्याधियाँ ऐसी है, जिसमे नहाना व्याधिवर्धक सिद्ध हो सकता है। ज्वर(बुखार), अतिसार (दस्त लगाना), आँखों के रोग, कान के रोग, वातव्याधियाँ जैसे मुँह का लकवा, पक्षाघात, संधिवात, आमवात इत्यादि। जिसे अजीर्ण हुआ है ऐसे व्यक्ती को भी स्नान नही करना चाहिए। खाने के तुरंत बाद भी नहाना नही चाहिए। खाने और नहाने मे कम से कम 4 घण्टे का अंतर रखना जरूरी होता है। खाने के तुरंत बाद नहाने पर अन्नपचन प्रक्रिया मे बाधा उत्पन्न होती है। नहाने से शरीर के तापमान मे गिरावट आती है और इस न्यूनतम तापमान पर अन्न का पाचन करने मे शरीर को बडी दिक्कत का सामना करना पडता है। इसलिए भोजनोत्तर स्नान को टालना ही बेहतर होता है, अन्यथा यह छोटीसी गलत आदत भी आगे चलकर आमवात जैसे भयंकर वातव्याधियों को जन्म देती है।
अस्तु। शुभम भवतु।
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