Vaidya Somraj Kharche, M.D. Ph.D. (Ayu) 05 Oct 2017 Views : 1977
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अमचूर और तैयार सब्जी के मसालें

Dried Mango Powder & Readymade Sabji Masala

आयुर्वेद चिकित्सा में पथ्यापथ्यपालन अर्थात परहेज करना अति महत्वपूर्ण है। बिना परहेज की चिकित्सा ही व्यर्थ है। आचार्य सुश्रुत के अनुसार परहेज करना ही आधी चिकित्सा है। कई बार बिना औषधियों के और सिर्फ पथ्यापथ्यपालन से ही रोगों को ठीक कर सकते है। परन्तु अनेक बार ऐसा भी देखा गया है की रोगी दृढ़ता से, संकल्पपूर्वक पथ्यापथ्य का पालन करता है, फिर भी पूरा ठीक नहीं होता। कितनी भी सोच समझकर चिकित्सा की जाये तो भी व्याधि का कुछ ना कुछ अंश तो बच ही जाता है। रोगी फिर भी बिना हिम्मत हारे चिकित्सा चालू ही रखता है। क्यों की उसे आज नहीं तो कल ठीक होने की आशा तो रहती ही है। परन्तु कई बार दुर्भाग्य से निराशा ही हाथों में आ जाती है और रोगी जिस चिकित्सापद्धति की चिकित्सा ले रहा होता है, उसे कोसता हुआ दूसरी चिकित्सापद्धति की शरण में निकल जाता है।

ऐसा क्यों होता है, क्या कभी सोचा है आपने?

इसका कारण है - गूढ़ हेतु……..

गूढ़ अर्थात रहस्यमय या फिर जो जल्दी से पहचाना न जा सके और हेतु मतलब कारण। गूढ़ हेतु अर्थात व्याधिनिर्मिति के ऐसे कारण जो जल्दी खोजे नहीं जा सकते। अमचूर जिसकी चर्चा हम यहाँ कर रहे है, वह ऐसे ही गूढ़ हेतुओंकी भूमिका निभाता है। कच्चे कैरी के छोटे छोटे टुकड़े किये जाते है। इन टुकड़ों को धुप में सुखाकर, बाद में पीसकर अमचूर बनाया जाता है। अमचूर स्वाद में अत्यंत खट्टा होता है। खट्टा स्वाद (अम्लरस) सभी को (छोटों से लेकर बड़ों तक) अत्यंत प्रिय होता है। इसीलिए जिन जिन खाद्यपदार्थोंको स्वादिष्ट/मुखप्रिय बनाना हो, इन सब व्यंजनों में अमचूर की पाउडर को आवश्यकतानुसार मिश्रित किया जाता है। आज बाजार में जलजीरा हो या अन्य कोई भी तथाकथित स्वघोषीत 'पाचक' उत्पाद हो, उसमे अमचूर एक घटकद्रव्य के रूप में अनिवार्यतः होता ही है।

अमचूर खट्टा होता है। इसीलिए लोग उसे पाचक (पाचन करने में मदद करनेवाला ) समझते है। परन्तु समझना और वस्तुस्थिति में वैसा होना - दोनों भिन्न भिन्न संकल्पनाएँ है। जिस अमचूर को लोग पाचक समझते है, आयुर्वेद उसे पित्तवर्धक और रक्तदूषित करनेवाला मानता है। इसीलिए जिन उत्पादों में अमचूर की मात्रा सहजता से समझ में आए इतनी ज्यादा होती है, रोगी ऐसे उत्पादों से दूर रहना ही पसंद करते है। परन्तु फिर भी लक्षणोत्पत्ति तो बंद नहीं होती। इससे सहजता से यह अनुमान लगाया जा सकता है की व्याधिउत्पत्ति में सहायक कारणों का सेवन रोगीद्वारा अपरोक्ष रूप से अभी भी चालू ही है। जो व्याधिप्रक्रिया शुरू रखने की मुख्य भूमिका मे होता है। परन्तु अब तो यह बात रोगी और वैद्य दोनों के समझ से परे ही होती है की ऐसा कौनसा कारण होगा जो अभी भी लक्षणोत्पत्ति कर रहा होगा? तो अमचूर ही इस रहस्यमय हेतु का नाम है। अब आप कहोगे की अमचूर तो हम खाते ही नहीं। जब से डॉक्टर साहब ने बोला है तब से ही बंद कर दिया है। तो एक काम कीजिये। आप सब्जी बनाने के लिए जो मसाला उपयोग करते हो, उसके घटकद्रव्य जरा गौर से देखिए। उनमे से एक घटकद्रव्य आपको अमचूर मिलेगा ही। जो बात आजतक न वैद्यो के ध्यान में आयी है न ही रोगियों के। इसका कारण यह है की अमचूर मूलतः भारतीय मसालों का घटकद्रव्य है ही नहीं और इसीलिए भी इस दृष्टिकोण से न तो वैद्य सोचता है न ही रोगी।

भारतीय पारम्परिक मसालों में अमचूर की जोड़ तो आधुनिक रसोई तज्ञों की खोज है। अमचूर भारतीय मसालों का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। परन्तु आजकल सब्जी का स्वाद ग्राहक को पसंद आए इसीलिए व्यावसायिकोने पारम्पारिक मसालों को और चटपटा बनाने के लिए उसमे अमचूर को भी डालना शुरू कर दिया। जिससे विशिष्ट कंपनियों के मसालों से बनायीं हुई सब्जी स्वादिष्ट और मुखप्रिय लगने लगी। यह देखकर बाद में सभी कंपनियों ने अमचूर डालना शुरू कर दिया, जो कि आज परिपाटी बन गयी है। वैद्यजी की सलाहनुसार रोगी ने भले ही प्रत्यक्ष रूप से सभी खट्टी चीजे बंद की हो, परन्तु अपरोक्ष रूप से सब्जी के तैयार मसालों द्वारा अभी भी रोगी का अम्लरस का सेवन तो चालू ही होता है। यही वो कारण है जिसकी वजह से रोगी को व्याधीलक्षणो में सम्पूर्ण राहत नहीं मिलती और व्याधि का कुछ न कुछ अंश तो शरीर में बच ही जाता है।

अमचूर शरीर मे पित्तप्रकोप तो करता ही है। साथ में कफदुष्टी भी करता है। इसीलिए अमचूर डाले हुए मसालों की सब्जियाँ खाने के बाद आदमी को गले में उत्पन्न हुई अतिरिक्त कफ की चिकनाहट को साफ़ करने के लिए बार बार थोड़ा खाँसना पड़ता है।

कुछ लोगों को कुछ विशिष्ट सब्जियाँ खाने के बाद दूसरे दिन सुबह नींद से उठने के बाद ही छींके आना शुरू हो जाती है। नाक से सतत पतला पानी आना शुरू हो जाता है। इसका कारण भी इस सब्जियोंके तैयार मसालों मे अमचूर की मात्रा ज्यादा होना होता है। कुछ लोगो को खाने मे प्रत्यक्ष खट्टा खाए बिना ही बारबार टॉन्सिल्स या सर्दी बनी रहती है - इन सबका कारण बाजार मे मिलने वाले तैयार मसालों मे डाला हुआ अमचूर होता है। अमचूर मे अम्लरस का इतना प्रकर्ष होता है की अल्प मात्रा मे सेवन किया गया अमचूर भी व्याधि निर्माण करने की क्षमता रखता है।

आजकल बाजार मे जितनी सारी कैंडी, खट्टी-मीठी गोलियाँ, पाचक फॉर्मूले है इन सभी मे अमचूर का प्रचुर मात्रा मे उपयोग किया जाता है। ताकि वो व्यंजन मुखप्रिय तथा स्वादिष्ट बने और ज्यादा प्रमाण मे उसकी बिक्री हो। अल्प अल्प मात्रा में रोज अमचूर का सेवन ही धातुदौर्बल्य, अत्यधिक केशपतन, कम उम्र मे ही बालोंका सफ़ेद होना, पैरो की एड़ी दुखना, बेवजह थकान लगना, सालोंसाल तक सर्दी रहना इन सब समस्याओंका कारण बना हुआ है। आमवात, किडनी पेशंट्स, लिवर सिरोसिस के रोगियों मे भी ऐसा कई बार देखने को मिलता है की सभी उपचार एक सही दिशा में होने के बावजूद भी शरीर पर सूजन कम नहीं होती। इन सबका कारण आहार मे अमचूर की उपस्थिति है जो जाने अनजाने में हम सब्जी के तैयार मसालों द्वारा सेवन कर रहे है। इसीलिए सब्जी के मसालें बने तब तक अमचूर 'रहित' ले अथवा घरपर ही बनाए और स्वस्थ जीवन की और एक कदम अग्रसर हो।

अस्तु। शुभम भवतु।

Ⓒ श्री स्वामी समर्थ आयुर्वेद सेवा प्रतिष्ठान, खामगाव 444303, महाराष्ट्र , भारत