Vaidya Somraj Kharche, M.D. Ph.D. (Ayu) 22 May 2017 Views : 4602
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स्वामीआयुर्वेद स्वास्थ्यसूत्रमाला - 2

काला मुनक्का - भाग 1

मुनक्का अर्थात सूखे द्राक्ष। मुनक्का किसी विशेष परिचय की अपेक्षा नही रखता क्यू की मुनक्के से प्रत्येक व्यक्ति (छोटों से लेकर बड़ों तक) भलीभाँति परिचित है। मुनक्के से ड्राई फ्रूट के रूप हमारा प्रथम परिचय बचपन में ही होता है परंतु औषधीय गुणों का परिचय तब होता जब बुखार में माँ हमें मुनक्का तवे पर देसी घी और सैंधव नमक के साथ सेंककर खिलाती है। ऐसा मुनक्का वास्तव में ही औषधीय गुणों से परिपूर्ण है।

प्रस्तुत है मुनक्के के औषधीय गुणधर्म एवम शास्त्रोक्त उपयोग -

1) मुनक्का शरीर के मांसधातु का बृंहण एवं पोषण करता है।

2) मुनक्का स्निग्ध एवं शीतल होने के कारण उत्कृष्ट तृष्णाशामक (तृष्णा मतलब प्यास) है। कई बार पित्त एवं वातवृद्धि के कारण रुग्ण बारंबार पानी पीने की इच्छा करता है, ऐसे वक्त उस रुग्ण को मुठ्ठीभर मुनक्का खिलाना चाहिये अथवा मुनक्कासिद्ध जल/काढ़ा सेवन करने के लिये देना चाहिये। वृक्क विकार( Chronic Kidney Diseases), डिहाइड्रेशन, तेज बुखार, Sjogrens Syndrome जैसे विकारों में विकृत तृष्णा (प्यास) उत्पन्न होती है, जिसमे मुनक्का का युक्तिकृत सेवन (तज्ञ आयुर्वेद डॉक्टर की सलाहनुसार) लाभदायी रहता है।

3) दाह - दाह अर्थात जलन। सार्वदैहिक पित्तवृद्धी अथवा स्थानीय पित्तवृद्धी के परिणामस्वरूप जब पुरे शरीर में जलन होती है, तब पीड़ित रुग्ण को मुठ्ठीभर मुनक्का खिलाना चाहिये अथवा मुनक्कासिद्ध जल/ काढ़ा सेवन करने के लिये देना चाहिये। ज्वर (fever), अम्लपित्त (Hyperacidity ) की वजह से छाती/पेट में होनेवाली जलन, गुददाह, मूत्रदाह, नेत्रदाह तथा अन्य तत्सम पित्तजन्य दाहों में मुनक्का, तज्ञ आयुर्वेद डॉक्टर की सलाहनुसार लेना चाहिये।

4) ज्वर (Fever) - तेज बुखार में शरीर का तापमान कम करने के लिये मुनक्के का काढ़ा वारंवार 1-1 चम्मच पिलाना चाहिये। आयुर्वेद में ज्वर (बुखार) की चिकित्सा में आहार सेवन निषेध बताया गया है। ऐसे वक्त उर्जास्तर (Energy level) बनाये रखने के लिये काले मुनक्के लोहे के तवे पर देसी घी और सैंधव नमक लगाकर सेंककर आहार की जगह खिलाना चाहिये, जिससे शरीर में उर्जास्तर भी बना रहता है तथा मुँह का स्वाद भी अच्छा रहता है।

5) श्वास (Asthma दमा) - श्वासव्याधी में श्वासनलिकाओंका शोथ कम करने के लिए तथा श्वासप्रणालियों में सटा हुआ (चिपका हुआ) कफ पिघलाकर निकलने लिए मुनक्का देसी घी सैंधव नमक में भूनकर खाना चाहिये अथवा मुनक्के का गरम गरम काढ़ा पीना अत्यंत लाभदायी होता है।

6) रक्तपित्त - शरीर में कही से भी बिना आघात के रक्तस्राव होना यह पित्तवृद्धी का लक्षण है, जैसे नकसीर फूटना, संडास या पिशाब में रक्तस्राव होना, स्त्रियों में मासिक धर्म के दौरान या उसके बिना ज्यादा रक्तस्राव होना। इन सब अवस्थाओं में अन्य औषधियों के साथ मुनक्के का सेवन बहोत लाभदायी रहता है।

7) क्षत- क्षय - क्षत अर्थात Ulcer, क्षय अर्थात शरीर का मांसधातु कम होना। मुनक्का चूँकि मांसधातुपोषक है इसीलिये Stomach ulcer, Duodenal ulcer , Ulcerative colitis जैसे व्याधियों में मांसधातु को बल प्रदान कर उत्तम कार्य करता है। उपरोल्लिखित व्याधियों में स्वामीआयुर्वेद मुनक्कों से ही बनाया हुआ स्वामीआयुर्वेद द्राक्षावलेहम भी अप्रतिम कार्य करता है।

विशेष टिप्पणी : मधुमेह से पीड़ित रुग्णों में मुनक्के के सेवन का निषेध है।

क्रमशः ............

© श्री स्वामी समर्थ आयुर्वेद सेवा प्रतिष्ठान, खामगाव, महाराष्ट्र