Vaidya Somraj Kharche, M.D. Ph.D. (Ayu) 20 Jul 2017 Views : 2663
Vaidya Somraj Kharche, M.D. Ph.D. (Ayu)
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स्वामीआयुर्वेद काला मुनक्का एक उत्कृष्ट कोटि का मुनक्का है। एक आहारीय द्रव्य होने के बावजूद काला मुनक्का एक उत्कृष्ट औषधि भी है, जिसका विवरण हम पूर्ववर्ती भागों में दे चुके है। आज कुछ अन्य औषधीय गुणधर्मो का विवरण आपकी सेवा में प्रस्तुत है।

तिक्तास्यतामास्यशोषं कासं चाशुव्यपोहति।

1. तिक्तास्यता - तिक्तास्यता अर्थात मुँह का कडवापन। शरीर मे पित्त बढने के बाद मुँह मे कडवापन उत्पन्न होता है। पित्तज ज्वर, अम्लपित्त अथवा अत्याधिक तला हुआ एवं खट्टा खाने से पित्त बढ़ता है। परंतु जब तक पित्त सार्वदैहिक नही होता तब तक मुँह मे कडवापन उत्पन्न नही होता। इसीलिए तिक्तास्यता का उत्पन्न होना मतलब पित्त बढ़ानेवाले कारणों का अतिसेवन। ऐसी स्थिती मे सद्योविरेचनम उत्कृष्ट एवं शीघ्र कार्य करता है। एक ही दिन मे रुग्ण को फायदा होता है। इसके पश्चात रुग्ण को रोज काले मुनक्के का क्वाथ अथवा फ़ांट पिना चाहिए। जिससे रुग्ण को निश्चित फायदा होता ही है।

2. आस्यशोषं - आस्यशोष अर्थात मुँह सुखा पडना। वस्तुतः यह लक्षण कई सारे व्याधीयों मे पाया जाता है, जैसे वातपित्तज ज्वर, अम्लपित्त, आमवात की प्रवृद्ध अवस्था, वातरक्त की विशिष्ट अवस्था, पाचनसंस्था के वातपित्तज विकार, बहोत ज्यादा चलने के वजह से, गर्मी के दिनों मे। ऐसी स्थिती मे काले मुनक्को को सतत चबाकर उसका रस निगलना चाहिए। आमवात की प्रवृद्ध अवस्था जिसे sjogren's syndrome के नाम से जाना जाता है, उसमे यह लक्षण बहोत पीडादायक रूप से उत्पन्न होता है। उस स्थिती मे भी काला मुनक्का सतत चबाकर चूँसने से लाभ होता है। कैन्सर मे रेडिओथेरपी चालू हो, तब भी मुँह का सुखना शुरू हो जाता है। रेडिओथेरपी की वजह से सिर्फ मुँह ही नही बल्कि जहा जहा शरीर मे स्त्राव उत्पन्न होता है, वो सभी स्त्राव सुख जाते है। शरीर रुक्ष हो जाता है। भयंकर कब्ज हो जाती है और कुछ कुछ लोगो को तो संडास की जगह मे व्रण (ulcer) भी उत्पन्न हो जाते है। काले मुनक्के का फाण्ट तो इस स्थिती मे वरदान से कम नही। काले मुनक्के का फाण्ट शरीर मे स्निग्धता, मृदुता तो उत्पन्न करता ही है, उपर से व्रणो को भरने मे मदद भी करता है।

3. कास - कास मतलब खाँसी। खाँसी के मुख्यतः दो कारण होते है -

    १) संक्रमणजन्य (Infections)

    २) असंक्रमणजन्य (Non-infections)

संक्रमणजन्य कारणों की वजह से उत्पन्न खाँसी मे काला मुनक्का या उसका फाण्ट इतना अच्छा काम नही करता। परंतु असंक्रमणजन्य कास मे जहा वात-पित्त की अधिकता हो, कफ सुखकर चिपक गया हो ऐसी स्थिती मे काला मुनक्का उत्कृष्ट कार्य करता है। कफ की अधिकता मे भी जब कफ का गठ्ठा जमता हो, तब काला मुनक्का कफ को पिघलाकर बिना किसी तकलीफ के बाहर निकालता है, जिससे खाँसी तुरंत कम हो जाती है।

स्वामीआयुर्वेद काला मुनक्का सेंद्रिय पद्धती से विकसित किया गया होने से, उपरोक्त सभी गुणधर्मों की उपलब्धि उसमे पूर्णतः होती है।


© श्री स्वामी समर्थ आयुर्वेद सेवा प्रतिष्ठान, खामगाव 444303, महाराष्ट्र, भारत