आयुर्वेदीय आहारविधी का आठवाँ नियम है - नातिविलम्बितमश्नीयात् अर्थात अधिक देर लगाकर भोजन न करे। साधारणतः एक व्यक्ती को भोजन करने के लिए औसतन 20 मिनीट लगते है। इससे ज्यादा समय नही लगना चाहिए ऐसा शास्त्र का मंतव्य है। परंतु भागदौड के इस युग मे जहाँ लोगो को साँस तक लेने की फुरसत नही, वहाँ अधिक देर लगाकर भोजन कौन करेगा?
उत्तर है - बच्चे और महिलाए
बच्चे और महिलाओं का अधिक देर लगाकर भोजन करने का कारण है - टीवी अर्थात टेलीविजन। वैसे तो आजकल टीवी देखते देखते खाना खाने का प्रचलन ही है। बच्चे भी यही सब बडों का देखकर ही सिखते है। विशेषकर माताओं का। माँ जब भी खाना खाती है, तो साँस-बहु की सिरीयल या कोई रियालिटी शो देखते देखते ही खाना खाती है। तो बच्चों पे भी यही संस्कार होते है। बच्चे फिर अपनी माँ का ही अनुकरण करते है। कार्टून चैनल लगाकर आधे से पौने घण्टे तक तो खाना ही खाते रहते है। एक बार भोजन शुरू किया की पहला निवाला अगर अब लिया होगा तो दुसरा निवाला टीवी पर चालू शॉट खलास होने के बाद ही मुह मे जाता है और वो भी जबरदस्ती या फिर डॉट-दपट के। ऐसा करते करते ही 30-45 मिनीट तक बच्चों का खाना चलता है। फिर माताएँ 'ये तो खाना ही नही खाता' ऐसी तक्रार लेके ओपीडी मे आती है, जिसका कोई अर्थ नही होता।
आजकल हम देखते है की छोटी उम्र मे ही बच्चों को कब्ज जैसी बीमारी लग जाती है। इसका कारण कोई अन्य नही, बल्कि यही टीवी देखते देखते या मोबाइल मे गेम खेलते खेलते धीमी गती से आहार सेवन होता है। कुछ दशकों पहले तक बच्चों मे खेलकुद की वजह से पाचनशक्ती मंद होने जैसे विकार दिखते ही नही थे। परंतु आजकल तो कई बार बच्चों मे भयंकर अग्निमांद्य देखा जाता है और इसका कारण एक ही है - धीमी गती से आहार लेना। ऐसे अधिक देर लगाकर भोजन करने से अन्नग्रहण से जो तृप्ती मिलती है, वो मिलती नही। खाने मे ध्यान नही होने की वजह से जरा ज्यादा ही खाया जाता है। धीमे धीमे खाने से थाली मे परोसा अन्न भी गरम से ठंडा हो जाता है और ठंडा आहार लेने से अन्न का परिपाक भी ठीक तरह से नही होता। इसीलिए घर के वरिष्ठ लोगों को ऐसी आदतों से दूर रहना चाहिए और बच्चों मे भी ऐसी आदते विकसीत न हो, इसके लिए ध्यान रखना चाहिए। अन्यथा ऐसी छोटी भूलो की वजह से ही पाचनतंत्र कमजोर होकार बडी बिमारियों का रास्ता सुलभ कर देता है।
अस्तु। शुभम भवतु।
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